जब कभी ग़ैर मुस्लिम नवजवान मक्का मस्जिद या किसी और मुक़ाम पर मुश्तबा हालत में पकड़े जाते हैं तो उन्हें पुलिस की जानिब से फ़ौरी तौर पर शराफ़त का सर्टीफिकट जारी करते हुए रिहा कर दिया जाता है। अगर कोई ग़ैर मुस्लिम मुश्तबा नवजवान पकड़ा जाए तो पुलिस फ़ौरी ये कहती है कि ज़हनी तौर पर माज़ूर शख़्स था इसी लिए उसे रिहा कर दिया गया।
इस तरह के कई वाक़ियात ख़ुद मक्का मस्जिद के अतराफ़ और अकनाफ़ पेश आ चुके हैं। साबिक़ में शहर के हालात ख़राब करने की ग़रज़ से जो कोशिशें अक्सरीयती फ़िर्क़ा के नवजवानों की जानिब से की गई इन कोशिशों के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार शूदा नवजवानों को भी कुछ इसी तरह के बहाने करते हुए रिहा करने की राहें हमवार की गईं।
सईदाबाद या फिर किशन बाग़ के इलाक़ा में अक्सरीयती तबक़ा की इबादतगाहों में गोश्त फेंकते हुए शर अंगेज़ी फैलाने की कोशिश करने वाले नवजवानों के इलावा मस्जिद में भी इसी तरह की हरकत करने वाले नवजवानों को ये कहते हुए रिहा कर दिया गया था।
कि ये नवजवान अदम तहफ़्फ़ुज़ का शिकार थे और वो अपने इलाक़ों में पुलिस पैकेट्स क़ायम करने की कोशिश में थे इसी लिए उन्हों ने इस तरह की हरकात कीं लेकिन 6 दिसंबर को बाद नमाज़ जुमा मुग़लपूरा से चारमीनार आने वाली सड़क पर जो हालात रूनुमा हुए इस में एक नवजवान को रंगे हाथों मुस्लिम नवजवानों ने पकड़ लिया और उसे पुलिस के हवाला किया लेकिन शाम होने तक पुलिस ने उस की रिहाई का इंतेज़ाम करते हुए ये कहा कि नवजवान ज़ख़्मी है इसी लिए उसे रिहा कर दिया गया।
जबकि इस के बरअक्स जब मुस्लिम नवजवान ज़ख़्मी होते हैं तो उन्हें ईलाज और मुआलिजा के लिए दवाख़ाना में शरीक होने से भी ख़ौफ़ होता है चूँकि पुलिस ज़ख़्मीयों को ढूंढ कर उन पर मुक़द्दमा दर्ज करती है।
पुलिस के उसूलों के मुताबिक़ जब कोई मुलाज़िम यूनीफार्म में नहीं बल्कि सिविल में होता है तो ऐसी सूरत में वो हाथ उठाकर सेलूट नहीं करता बल्कि दोनों हाथ पीछे लेजाकर कुछ झुक जाता है जोकि इस के महकमा से वाबस्ता होने की दलील होती है।