बिलासपुर: देश की जनता भले ही अपना इलाज करने वाले डॉक्टरों को आज भी भगवान के रूप में देखता हो. लेकिन सच्चाई यह है कि इस पेशे से जुड़े हुए लोग अब व्यवसायिक बन चुके है. उन्हें मरीज से नहीं अपने पैसे से लगाव है. मरीज मरे या जिन्दा रहे. उनको उनके पैसे जरूर मिलने चाहिए. कुछ ऐसा ही वाक्या बिलासपुर में सामने आया है. तीरंदाजी के लिए देश का नाम रोशन करने वाली राष्ट्रीय खिलाड़ी शांति धांधी की मौत के बाद उसका शव सिर्फ अपोलो अस्पताल के मैनेजमेंट ने इसलिए देने से मना कर दिया. क्योंकि उसका 2 लाख रुपये का बिल बकाया था.
मिली जानकारी के बाद इलाज के बदले में 2 लाख रुपए का बिल नहीं दे पाने पर अपोलो अस्पताल के मैनेजमेंट ने तीरंदाजी की राष्ट्रीय खिलाड़ी का शव देने से मना कर दिया. लाख मिन्नतों के बाद भी जब प्रबंधन नहीं माना तो मृतका की बहन डॉक्टरों के सामने जाकर रोने लगी. उसने डॉक्टरों से कहा- पैसे के बदले में जब तक चाहो, मुझे रख लो, मुझे गिरवी रख लो, मुझसे जो काम चाहो करवा लो लेकिन मेरी बहन की लाश दे दो. उसे यहां पर बंधक मत बनाओ. हमारे पास पैसा नहीं है. हमारा तो सब कुछ इलाज में लुट चुका है. इतनी मिन्नत के बाद प्रबंधन ने रकम जमा करने की बात लिखित में लेकर शव परिजनों को सौंपा.
बताया जाता है कि कोरबा के मुड़ापार के रहने वाली 18 साल की शांति धांधी का लीवर फेल हो गया था. एसईसीएल कोरबा अस्पताल से उसे 14 मार्च को अपोलो रेफर किया गया. 14 मार्च से उसका इलाज अपोलो में चल रहा था. बीते शनिवार की रात करीब एक बजे उसकी मौत हो गई. युवती के इलाज के दौरान उसकी बहन सावित्री धांधी और पड़ोस में रहने वाला उसका भाई कैलाश साहू साथ थे.
जब उन्हें मौत का पता चला तो उन्होंने रात में ही परिजनों को सूचना दे दी. अपोलो प्रबंधन ने परिजनों से बिल का हिसाब करने के लिए कहा. सावित्री और कैलाश बिल पूछने के लिए पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि 2 लाख 19 हजार रुपए और जमा करना है. इस पर परिजनों ने कहा वे उतना पैसा नहीं दे सकते. बिल क्लीयरेंस नहीं होने पर प्रबंधन ने शव को मरच्युरी में भिजवा दिया. दोनों भाई-बहन ने रविवार सुबह तक अलग-अलग जगहों से पैसे का इंतजाम करने की कोशिश की, लेकिन हो न सका. इसके बाद बहन के गुहार लगाने पर शव सौंपा गया. वहीं भाई कैलाश का आरोप है कि अपोलो में इलाज नहीं होने के बाद भी जबरिया मरीज को वहां पर रखकर बिल बढ़ाया जा रहा था.
सौजन्य –इण्डियासंवाद.कॉम