शहबाज़ तासीर की रिहाई के बारे में मुतज़ाद दावे

इस्लामाबाद: पाकिस्तानी पंजाब के मक़्तूल गवर्नर सलमान तासीर के फ़र्ज़ंद जो समझा जाता है कि 2011 में अस्करीयत पसंदों के हाथों अग़वा करलिए गए थे पाकिस्तानी फ़ौज ने उन्हें रिहा नहीं करवाया। विज़ारत-ए-दाख़िला की तहक़ीक़ात से पता चलता है कि ये कारनामा पाकिस्तानी फ़ौज का नहीं था इस इन्किशाफ़ पर ओहदेदार शर्मिंदा हो गए हैं।

शहबाज़ तासीर ने कहा कि 26 अगस्त 2011 को लाहौर के इलाक़ा गुल-बर्ग से उन्हें अग़वा किया गया था और इसी वक़्त से अस्करीयत पसंद ग्रुप्स ने उन्हें यरग़माल बनाकर रखा था । उनके फ़राख़दल वालिद को उनके बुनियाद परस्त बॉडीगार्ड मुमताज़ कादरी ने जनवरी 2011 में मुतनाज़ा इहानत मज़हब क़ानून के बारे में उनके मौक़िफ़ की बिना पर हलाक कर दिया था। मुमताज़ कादरी को जारिया माह के अवाइल में रवालपिंडी में सज़ा-ए-मौत दे दी गई। शहबाज़ को 8 मार्च को रिहा किया गया उन्हें तक़रीबन पाँच साल तक यरग़माल बनाकर रखा गया था|

उनकी दस्तयाबी के बाद बलोचिस्तान की हुकूमत के तर्जुमान अनवारा लक़ ककर ने दावा किया कि शहबाज़ को फ़ौज ने अपनी एक कामयाब कार्रवाई के दौरान तालिबान अक्सरीयत वाले क़स्बा कचलाक के एक होटल से रिहा करवाया था लेकिन वज़ीर-ए-दाख़िला निसार अलाएक़ान ने इन हालात की तहक़ीक़ात के लिए क़ायम किया था जिनके नतीजे में शहबाज़ को बलोचिस्तान की हुकूमत के दावे की तहक़ीक़ात करे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ये वाज़िह नहीं था कि अग़वा करने वालों ने उन्हें आज़ाद क्यों किया। या उन्हें ज़र तावान अदा किया गया था । कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि किसी भी शख़्स को ये मसला अपनी कारकरदगी का नतीजा होने का दावा करने का हक़ नहीं है । बयान मी नज्जो कल जारी किया गया कहा गया है कि जो लोग इस वारदात में शामिल‌ थे उनकी शख़्सी कारकर्दगी और सख़्त इंतिबाह के नतीजे में ये रिहाई अमल में आई है।

विज़ारत-ए-दाख़िला के इस वाक़िये के सिलसिले में रद्द-ए-अमल के बाद ककर ने कहा कि हुकूमत बलोचिस्तान अपने सरकारी बयान पर क़ायम है। उन्होंने कहा कि हम नहीं जानते कि विज़ारत-ए-दाख़िला ऐसा क्यों कह रही है कि अग़वा कुनुनदों से उसने रिहाई दिलाई थी वो सरकारी बयान पर क़ायम हैं। जो फ़ौज की कार्रवाई के बारे में है। फ़ौज ने कचलाक के मकान पर धावा किया था और शहबाज़ तासीर की ख़ुद ने शनाख़्त की थी। उन्होंने कहा कि ये एक कामयाब कार्रवाई थी क्योंकि कचलाक तालिबान की ग़ालिब आबादी का क़स्बा समझा जाता है। इस वाक़िये की तहक़ीक़ात का चौधरी निसार ने हुक्म दिया था|