हिंदुस्तान ने साईंस और टेक्नोलॉजी तालीमी , इक़तिसादी , ख़लाई साईंस और तिब्ब के शोबों में ग़ैरमामूली तरक़्क़ी की है और अमरीका-वो-दीगर मग़रिबी ममालिक की नज़रों में हमारा मुल्क दुनिया की उभरती हुई मईशयतों में से एक है ज़िंदगी के हर शोबा में तरक़्क़ी के बावजूद अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि मुल्क की निस्फ़ आबादी हाजत के लिए खुले मुक़ामात का रुख़ करती है और ये तल्ख़ हक़ीक़त है कि मर्दुम शुमारी 2011 के मुताबिक़ हिंदुस्तान की जुमला आबादी 1,210,193,422 यानी 1.2 बिलियन से ज़ाइद पर मुश्तमिल है ।
जिन में से निस्फ़ आबादी को बैतुलखुला की सहूलत नहीं हाँ आप को बेशतर हिंदुस्तानियों के हाथों में मोबाईल फोन्स और घरों में झोंपड़ियों में टी वी सेट्स ज़रूर नज़र आएंगे । हिंदुस्तान में ऐसी लाखों बस्तियां हैं जहां के घरों में बैतुलखुला नहीं हैं लोग हाजत के लिए रेलवे पटरियों , खुले मैदानों , जंगलाती इलाक़ों का रुख़ करते हैं । ख़ुद हमारे शहर में इस तरह की कई बस्तियां हैं ।
जहां कसीर आबादी के बावजूद एक भी बैतुलखुला नहीं है । ऐसी ही एक बस्ती मेह्दीपटनम के करीब गुडी मल्लिका पर में वाक़े है जिसे झोंपड़पट्टी कहा जाता है । इस सलम बस्ती में दो सौ झोंपड़ीयाँ हैं जिन में 20 झोंपड़ीयाँ मुस्लमानों की हैं । कई बर्सों से यहां लोग मुक़ीम हैं और उन के पास राशन कार्ड वोटर शनाख़ती कार्ड्स , आधार कार्ड्स जैसे ज़रूरी कार्ड्स भी मौजूद हैं ।
छोटे मोटे कारोबार करते हुए ज़िंदगी गुज़ारने वाले गरीबों की इस बस्ती में एक भी बैतुलखुला नहीं है जिस के नतीजा में यहां के मर्द और ख़वातीन करीब में वाक़े एक पहाड़ी इलाक़ा में जाकर ज़रूरत से फ़ारिग़ होते हैं । उन में से एक की दुकान पर दो सौ ता तीन सौ रुपये का सामान होगा । वही सामान फरोख्त करते हुए गुज़ारा कर लेते हैं ।
मुहम्मद हसन उद्दीन के बेटे मुहम्मद ख़्वाजा मियां कफ़गीरें बनाने का काम करते हैं मुहम्मद इमाम तरकारी फ़रोश हैं उस नौजवान ने बताया कि उन की हाल ही में शादी हुई है । ससुराल गाँव का है चूँकि सारी बस्ती में एक भी सरकारी बैतुलखुला नहीं ऐसे में ख़वातीन को करीब में वाक़े पहाड़ों पर जाना पड़ता है ।
लोग शराब के नशा में धुत होते हैं और ख़वातीन के साथ जिन्सी ज़्यादतियों के वाक़ियात में भी ख़तरनाक हद तक इज़ाफ़ा हुआ है। ऐसे में ख़वातीन की वापसी तक बहुत बेचैनी रहती है और ज़हन में कई ख़दशात आते रहते हैं किसी भी किस्म की नागहानी सूरते हाल या वाक़िया से बचने के लिये ख़वातीन ग्रुप की शक्ल में रफ़ा हाजत के लिये जा रही हैं जब कि तन्हा ख़वातीन को ज़रूरत से फ़ारिग़ होने के लिये नहीं भेजा जाता कम अज़ कम उन के साथ एक ज़ईफ़ ख़ातून ज़रूर जाती है ।
बहरहाल तरक़्क़ी के इस दौर में जब कि हुकूमत अवामी बहबूद के बुलंद बाँग दावे करती है इस तरह की बस्तियां हुकूमत के वादों का मज़ाक़ उड़ाने के मुतरादिफ़ है बल्कि मुस्लिम इलाक़ों से और इस में रहने वाले लोगों से हुकूमत और सरकारी महकमों की ग़फ़लत जम्हूरियत के साथ एक मज़ाक़ है।