शहर के बड़े स्कूलस स्टेशनरी मारकिटस में तब्दील

नया तालीमी साल 2012-13 शुरू होने से पहले स्कूलस स्टेशनरी मारकिटस में तब्दील हो चुके हैं स्कूलस के अहाता में दर्सी कुतुब , नोट बुक्स और दूसरा स्टेशनरी सामान फ़रोख़त किया जा रहा है । स्कूल यूनीफार्मस भी बेचे जा रहे हैं बड़े स्कूलस में स्कूल के अहाता में ही सेल्ज़ काउंटर्स क़ायम किए गए हैं जब कि औसत दर्जे के और छोटे स्कूलस ने टोकन जारी किए हैं और बच्चों के वालदैन से कहा गया है कि वो मुक़र्ररा स्टोरस से खरीदी करें ।

स्कूलस के लिए बनाए गए ज़ेली क़वानीन में इस बात की कोई गुंजाइश नहीं है कि स्कूलस ख़ुद स्टेशनरी सामान फ़रोख़त करें इस तरह स्कूल मैनिजमंट खुले आम क़वाइद की ख़िलाफ़वरज़ी कररहे हैं । सरपरस्तों को स्कूलस से दरकार चीज़ें खरीदने पर कोई एतराज़ नहीं है । लेकिन वो ज़ाइद कीमतों से परेशान हैं । यही एशिया-मार्किट में सस्ते दाम दस्तयाब हैं ।

सरपरस्त इस गैर मुंसिफ़ाना इजारा दारी के ख़िलाफ़ शिकायत करना नहीं चाहते वो समझते हैं कि तसादुम की राह इख़तियार करने की सूरत में उन के बच्चे मुसीबत में पड़ जाएंगे क्यों कि पसंदीदा स्कूल में सीट मिलना आसान नहीं होता स्कूलस दरकार अशिया-दस हज़ार रुपये से बीस हज़ार रुपये के पियाकेज की शक्ल में फ़रोख़त कर रहे हैं ।

लेकिन यही एशिया-ए-मार्किट में निस्फ़ से भी कम कीमतों पर दस्तयाब हैं । 2009 मैं जारी किए गए एक जी ओ के तहत स्कूलस को इस बात से मना किया गया है कि वो सरपरस्तों को स्कूलस से स्टेशनरी खरीदने केलिए पाबंद करें । जी ओ में कहा गया है कि ये सरपरस्तों की मर्ज़ी पर है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी दूसरे ज़राए से दरकार एशिया-ए-खरीदें । बेशतर स्कूलस इस जी ओ को नज़र अंदाज कर रहे हैं ।।