शहरी इलाक़ों में अवाम वल्दिया और हुकूमत से कम अज़ कम बुनियादी सहूलतों की फ़राहमी की तवक़्क़ो कर सकते हैं बल्कि अपने नुमाइंदों के ज़रीए बुनियादी सहूलतों की बेहतरी का मुतालिबा कर सकते हैं।
चूँकि शहर में बसने वाला हर शहरी रास्त या बिलवास्ता तौर पर टैक्स अदा कर रहा है और हर टैक्स अदा करने वाले को इस बात का हक़ हासिल है कि वो हुकूमत को बताए कि वो चाहता किया है और उसे हासिल किया नहीं हो रहा है।
बरसहा बरस में एक तरक़्क़ियाती प्रोजेक्ट की तकमील इलाक़ा की तरक़्क़ी का सबब नहीं बन सकती इसी लिए ये ज़रूरी है कि इस जम्हूरी निज़ाम में अवाम अपने वजूद का एहसास दिलाते हुए अपने मुतालिबात को पेश करें ताकि हुकूमत और नुमाइंदे उनके मुतालिबात की यक्सूई के लिए मजबूर हो जाएं।
जम्हूरी तर्ज़ हुक्मरानी में अवाम की राय को काफ़ी अहमियत हासिल होती है लेकिन अवाम की जानिब से अमली तौर पर इस निज़ाम में हिस्सा ना लिए जाने के बाइस शहरी इलाक़ों की हालत भी अबतर होती जा रही है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने इक़तिदार हासिल करने के बाद मुहल्ला कमेटी के नज़रिया को काबिले अमल बनाते हुए अवाम की राय के मुताबिक़ तरक़्क़ियाती काम अंजाम देने का फैसला करते हुए अवाम की मर्ज़ी की अहमियत को उजागर किया है।
अवाम क्या चाहते हैं के अनवान से शुरू किए जा रहे इस कॉलम के लिए आप अपने मसाइल और उनका आपकी नज़र में जो हल है वो साफ़ ख़ुशख़त लिख कर हमें दफ़्तर सियासत पर रवाना करें और वाज़ेह तौर पर उनवान लिखें अवाम क्या चाहते हैं?