शहर में मिसाली शादी , मस्जिद में निकाह , शादी ख़ाना में इस्तिक़बालीया से गुरेज़

शहर में किसी गरीब के घर शादी हो या किसी दौलतमंद के मकान में शादी ब्याह की तक़रीब या फिर मुतवस्सित(मिडिल) ख़ानदान के कोई लड़का लड़की रिश्ता-ए-इज़दवाज में बंध रहे हूँ आप इन तमाम शादियों में धूम धड़ाका ज़रूर देखेंगे । लेन देन घोड़ा जोड़ा , जहेज़ के नाम पर अन्वा-ओ-इक़साम का सामान और शादी-ओ-वलीमा मसनोना के मौक़ा पर दस्तरख़्वान ( जिस ने अब डाइनिंग टेबल की शक्ल इख़तियार करली है ) पर तरह तरह की डिशेस आप को ज़रूर नज़र आएंगी और जहां तक शादी-ओ-वलीमा की तक़ारीब में खाने और शादी ख़ानों के इंतिख़ाब का सवाल है इस मुआमला में एसा लगता है कि मुस्लिम मुआशरा में ज़बरदस्त मुसाबक़त चल रही है हर कोई अच्छे से अच्छा शादी ख़ाना ले रहा है और खाने के मीनू में कम अज़ कम दो किस्म की बिरयानी ,

तीन ता चार किस्म का मुर्ग़ , दो किस्म के मीठे और हाज़मा के लिये ठंडे मशरूबात की बोतलें शामिल दिखाई देंगी । अगरचे महंगे तरीन शादी ख़ाने और बहुत इक़साम की लज़ीज़ डिशेस का इंतिज़ाम करना गरीब और मुतवस्सित तबक़ा के बस में नहीं है लेकिन अमीर हज़रात की शादियों-ओ-दीगर तक़ारीब को देख कर समाज के ये तबक़ात भी किसी ना किसी तरह उसी अंदाज़ में शादियां करने की कोशिश कर रहे हैं चाहे इस के लिये उन्हें सूदी क़र्ज़ के दलदल में ही क्यों ना फंसना पड़े ।

इस तरह के माहौल में अगर कोई सुंत के एन मुताबिक़ शादी करे और वलीमा मसनूना में भी सीधे साधे खाने से मेहमानों की तवाज़ो करे तो हम उसे एक बहुत बड़ा इन्क़िलाब ही कहेंगे । एसी ही एक मिसाली और इन्क़िलाबी शादी में 30 जून को हमें शिरकत करने का मौक़ा मिला । शहर की एक मुअज़्ज़िज़-ओ-मशहूर-ओ-मारूफ़ शख्सियत ने हमें अपने बेटे की शादी में मदऊ (इनवाइट)किया था । मुश्किल से दो ता तीन रुपये कीमत के रुका का जब हम ने तफ़सील से जायज़ा लिया तो पता चला कि निकाह मस्जिद में किया जा रहा है और दुल्हे वालों ने लड़की वालों को शादी ख़ाना बुक करवाने की ज़हमत ही नहीं दी ।

हफ़्ता को बाद नमाज़ अस्र दारुलशिफ़ा-ए-की वसीअ-ओ-अरीज़ मस्जिद हाजी कमाल में तक़रीब निकाह मुनाक़िद हुई जिस में कम अज़ कम 500 मेहमानों ने शिरकत की । नमाज़ अस्र में मस्जिद मुस्लियों से खचाखच भरी हुई थी । नमाज़ के साथ ही क़ारी मुहम्मद अली ख़ां ने क़िरात कलाम पाक की सआदत हासिल की । निकाह पढ़ा गया और नौशा के वालिद ने मुख़्तसर लेकिन जामे ख़िताब किया । उन्हों ने मुस्लिम मुआशरा में शादियों को इसराफ़(फुजूल खर्ची) का ज़रीया बनाते हुए उसे मुश्किल और ज़ना को आसान बना देने के ख़तरनाक रुजहान पर रोशनी डाली और कहा कि मिल्लत को बेजाइसराफ़(फुजूल खर्ची)के गुनाह से बचाने के लिये उल्मा-ओ-मशाइख़ीन के साथ साथ आम मुस्लमानों को भी आगे आना चाहीए । ख़ुतबा निकाह का उर्दू में हामिद मुहम्मद ख़ां सदर एम पी जे ने तर्जुमा किया ।

निकाह के फ़ौरी बाद दुल्हन को मस्जिद से ही दुल्हे के घर रवाना कर दिया गया और निकाह की पुर असर तक़रीब चंद मिनटों में खत्म होगई । इस किस्म की हैरत अंगेज़ शादी की तक़रीब के बारे में जब राक़िम उल-हरूफ़ ने नौशा के वालिद से बात की और बताया कि इस तरह की शादियों के बारे में तो क़ारईन को वाक़िफ़ करवाना चाहीए । तब उन्हों ने इस शर्त पर हमें रिपोर्ट शाय करवाने की इजाज़त दी कि दुल्हे या दुल्हे के वालिद के नामों का हवाला रिपोर्ट में हरगिज़ नहीं दिया जाएगा । इन का कहना था कि मैं ने अपने लड़के की शादी शरई लिहाज़ से करते हुए कोई बड़ा काम नहीं किया । अल्लाह ने मुझे और मेरे घर वालों को बेजा इसराफ़(फुजूल खर्ची)से बचाया है और गैर शरई रसूमात से महफ़ूज़ रखा है जिस के लिये अल्लाह रबुलइज़त का जितना भी शुक्र किया जाय कम है ।

नौशा के वालिद ने बताया कि उन्हों ने अपने सिविल इनजीनयर बेटे के लिये एक मुस्तहिक़ दोस्त की बेटी को पसंद किया और जब इस बारे में नौशा और उन की माँ की राय जानने की कोशिश की तो दोनों भी बखु़शी राज़ी होगए । नौशा के वालिद ने मज़ीद कहा कि इन की ख़ाहिश है कि हैदराबादी मुस्लमान अपने घरों में शादियां सुंत रसूल के एन मुताबिक़ अंजाम दें । लेन देन घोड़े जोड़े और जहेज़ की लानत से ख़ुद को दूर रखें । गांजे बजाने और शामा नवाज़ी के गुनाहों से अपने दामन को पाक रखें अगर एसा होता है तो गरीब मुस्लमान क़र्ज़ के लिये दूसरों के आगे हाथ फैलाने से महफ़ूज़ रहेंगे और करोड़ों रुपय की बचत होगी ।

दूसरे दिन वलीमा में शिरकत कर के हम ने इस बात पर अल्लाह का शुक्र अदा किया कि एक अच्छे मुक़ाम पर हमें आने का मौक़ा मिला । अक्सर वलीमों में देखा गया है कि आरकैस्टरा का इंतिज़ाम किया जाता है और मेहमान एक से एक फ़हश गाने की फ़र्माइश करते हुए नोटों की बारिश कर देते हैं लेकिन इस वलीमा में क़ारी नसीर उद्दीन ने क़िरात कलाम पाक के ज़रीया महफ़िल को मुअत्तर बना दिया । वलीमा की इस तक़रीब में बिरयानी , एक किस्म का मीठा और लुक्मी रखी गई थी । मेहमानों की कसीर तादाद ने इस हल्के फुल्के डिशेस को अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए सैर भर कर खाया और ज़ौजेन(मियां बीवी) और नौशा के वालदैन के हक़ में दुआएं देते हुए वापिस हुए ।

शादी और वलीमामें शरीक रहे हर मेहमान की ज़बान पर यही अलफ़ाज़ थे कि हमारे शहर के हर घर में इसी तरह की शादियां और वलीमा हूँ अगर इस तरह की सादा तक़ारीब मुनाक़िद होती हैं तो फिर मिल्लत करोड़ों रुपये की बचत कर सकती है जिसे दूसरे अहम और ज़रूरी कामों में इस्तिमाल किया जा सकता है । यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी होगा कि रियासत के बाअज़ मुक़ामात पर गैर मुस्लमानों ने शादी और वलीमा में सिर्फ एक डिश रखने की रिवायत क़ायम कर रखी है अगर हैदराबाद में भी इसी तरह की रिवायत क़ायम होती है तो फिर ये मिल्लत पर बहुत बड़ा एहसान होगा ।

हाल ही में शादी में खाने से मेहमानों की तवाज़ो करने के मसला पर एक रिश्ता होते होते रह गया । बताया जाता है कि हैदराबाद से ताल्लुक़ रखने वाले डाक्टर लड़के की करनूल की लड़की से शादी तए हुई लेकिन दुल्हे वालों के इस इसरार पर कि शादी के दिन यादगार खाना दिया जाय ये रिश्ता टूट गया । बहर हाल मसाजिद में निकाह और वलीमा सादा सीधे अंदाज़ में करने के रिवाज को फ़रोग़ देना हर मुस्लमान का फ़र्ज़ है । इस से मुआशरा में एक सालेह इन्क़िलाब बरपा होगा और शहर में बसने वाले हर मुस्लमान के घर होने वाली शादी सुंत रसूल के एन मुताबिक़ होगी । काश एसा मुम्किन होता ।।