शहर में 779 करोड़ रुपये प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली , सहूलतें नदारद

हैदराबाद 23 अप्रैल : एक ऐसा वक़्त था जब पुराना शहर हैदराबाद का इंतिहाई तरक़्क़ी याफ्ता ख़ुशहाल और तमाम सहूलतों से आरास्ता इलाक़ा तसव्वुर किया जाता था । शहर के इस हिस्सा में वसीअ और अरीज़ सरकारी स्कूल्स , तमाम सहूलतों से लैस सरकारी दवाखाने , नौजवान नस्ल की सेहत को फ़रोग़ देने और खेल कूद की ज़रूरियात की तकमील के लिए कई एकड़ अराज़ी पर फैले मैदान , वसीअ और कुशादा पार्क्स ,

शहरियों की शिकायात को दूर करने की लिए सरकारी दफ़ातिर ग़रज़ अवाम की सहूलत के लिए दरकार सहूलतें और इदारे हुआ करते थे लेकिन 1950 के बाद एक मुनज़्ज़म साज़िश और मंसूबे के तहत आहिस्ता आहिस्ता पुराना शहर को तमाम सहूलतों से महरूम करने का अमल शुरू किया गया अब यहां सरकारी हॉस्पिटल ( क्लीनिक्स ) सरकारी दफ़ातिर स्कूल और कॉलेज की सरकारी इमारतें बराए नाम नज़र आती हैं ।

हद तो ये है कि पुराना शहर में एक पासपोर्ट ऑफ़िस तक नहीं ये सब कुछ शहरियान हैदराबाद की बेहिसी का नतीजा है । अगर शहर के मकीन ज़िद पर आ जाएं तो हुकूमत से लेकर सरकारी इदारों सब को झुकना पड़ता है लेकिन अफ़सोस के हम हर ज़ुल्मो जबर बड़ी आसानी से बर्दाश्त कर लेते हैं । जी एच एम सी प्रॉपर्टी टैक्स के नाम पर शहर के मकीनों से सालाना 779 करोड़ रुपये वसूल करता है ,

और जहां तक पुराना शहर का सवाल है उस के सिर्फ़ एक ज़ोन साउथ ज़ोन से इस साल 61 करोड़ रुपये महसूल वसूल किया गया लेकिन तरक़्क़ी के मुआमला में पुराने शहर को पूरी तरह नज़रअंदाज कर दिया गया है । पुराना और नए शहर की तरक़्क़ी और ख़ुशहाली और सहूलतों का तक़ाबुली जायज़ा लेने पर हमारे सर शर्म से झुक जाते हैं कि किस तरह इस तारीख़ी शहर को तास्सुब और जांबदारी का निशाना बनाया जा रहा है और हुकूमत के इस सौतेलेपन में ख़ुद शहरियान हैदराबाद भी अपनी ख़ामूशी का रोल अदा कर रहे हैं ।

अज़ीमतर मजलिस बलदिया हैदराबाद ने शहर में 1158 बस स्टॉप्स तामीर करने का मंसूबा बनाया है और इस मंसूबा में पुराना शहर में सिर्फ़ 100 बस स्टॉप्स बनाने की बात कही गई है ।

बस डीपोज़ के मुआमला में भी नया शहर आगे है पुराना शहर में तीन और नए शहर में इक्कीस बस डीपोज़ हैं । नए शहर की बनिसबत पुराने शहर में सलम इलाक़े ( कुंदा बस्तियां ) बहुत ज़्यादा हैं । फाइनेंसरों की भरमार ने गरीबों का जीना मुहाल कर दिया है ।

उन की जानें अस्मतें महफ़ूज़ नहीं । अवाम में बेरोज़गारी और ग़ुर्बत का दौर है, बैंक्स पुराने शहर के मकीनों को क़र्ज़ देने से कतराते और शरमाते हैं । क्रेडिट कार्ड हासिल करने में भी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।