हैदराबाद 11 फरवरी : ( सियासत न्यूज़ ) : मुस्लिम मुआशरा का बड़ा हिस्सा रिवायत परस्ती , सदियों की ज़हनी गु़लामी , ग़ुर्बत , नाख़्वान्दगी या अंधी अक़ीदत से तय्यार करदा समाजी पसमांदगी में मुबतला नहीं है फिर भी ये मुआशरा ख़ुद पर एसा ज़ुलम कररहा है कि पूरे मुआशरा को इस्लाह की सलाहियत से यकसर महरूम कर दिया है । अपने ज़ाती फ़ायदा से ज़्यादा मुस्लिम मुआशरा की खराबियों का मूजिब बनने वाले काम दिन बह दिन तेज़ी से फ़रोग़ पाते जा रहे हैं । शादी ब्याह , छल्ले छट्टियां , सालगिरा तक़ारीब में बेतहाशा अख़राजात और मनमानी पकवान के ज़रीया मार्किट की हर शए के नर्ख़ों को आसमान पर चढ़ा दिया गया है ।
शादी ब्याह में अख़राजात पर क़ाबू पाने की लाख तलक़ीन की जाय इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है । शादियों के बेजा मसारिफ़ के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने वालों ने अपने तौर पर लाख कोशिश की है मगर ये मुहिम शहर हैदराबाद-ओ-सिकंदराबाद में असर पज़ीरी से क़ासिर है । अलबत्ता मुस्लिम मुआशरा का एक तबक़ा अपने छोटे छोटे टाउंस में शादी ब्याह , अक़ीक़ा और दीगर रसूमात पर इसराफ़ पर क़ाबू पालिया है । मिसाल के तौर पर हैदराबाद के करीबी ज़िला महबूबनगर और इस के टाउन शाद नगर में बहतरीन और मिसाली शादियां होरही हैं । इस ताल्लुक़ से एस एम एस और ई मेल की भी मुहिम शुरू की गई है ।
मुआशरा का दर्द रखने वालों ने इस मुहिम को तेज़ी से दूसरों तक फैलाने का काम किया है । एक शहरी ने शादियों में इसराफ़ के अमल को रोकने के लिए काबिल तक़लीद मुहिम शुरू की है वो इस एम एस और ई मेल के ज़रीया अवाम में बेदारी लाना चाहते हैं । ये क़ाबिल नोट बात है कि तंज़ीम हिंदूस्तानी नामी ग्रुप ने अपने हलक़ों में इसराफ़ के ख़िलाफ़ मुहिम चलाई है । इस के साथ ये तशहीर भी की जा रही है कि आंधरा प्रदेश के अज़ला कुरनूल , निज़ाम आबाद , महबूबनगर और दीगर टाउंस में मुस्लमानों ने लड़की वालों की दावत के लिए उसूल वज़ाह किए हैं और लड़की वालों को ताकीद की गई है कि वो दावत में सिर्फ एक एटम चावल चाहे वो वीजे टेरियन होया नान वेज ( शाही बिरयानी नहीं ) रखी जाय ।
इस के साथ एक सालन ( नॉनवेज ) इस के साथ सिर्फ एक मीठा रखा जाय अगर कोई इस से हट कर बिरयानी और दीगर लवाज़मात का इंतिज़ाम करे तो इस शादी का बाईकॉट कर दिया जाता है और बाअज़ मुक़ामात पर इसराफ़ के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने वाले नौजवान इस शादी के ख़िलाफ़ एहतिजाज करते हैं जहां मुक़र्ररा एक चावल , एक सालन और एक मीठे से हट कर ज़ाइद पकवान का इंतिज़ाम किया जा रहा है । बाअज़ नौजवान अचानक शादी ख़ाना या पकवान के मुक़ाम पर पहुनचकर ख़िलाफ़ उसूल पकवान को रोकते हैं या फिर उस पकवान को नाक़ाबिले इस्तिमाल बनाकर चले जाते हैं , ताकि लड़की वालों को ये शादी के अख़राजात से बचाने के लिए ये सज़ा दी जाती है ।
ये काम उल्मा और दीन के ज़िम्मेदारों का काम है । मगर आज नई नसल से वाबस्ता चंद नौजवान सरगर्म होगए हैं ताकि शादियों में मसारिफ़ पर क़ाबू पाया जा सके । लेकिन ये अमल बड़े शहरों हैदराबाद-ओ-सिकंदराबाद में नहीं है जहां कीमती शादी ख़ानों और नित नए इक़साम के शानदार पकवान के ज़रीया मनमानी अख़राजात किए जा रहे हैं । तंज़ीम हिंदूस्तानी ने इस सिलसिला में अफ़सोसनाक सच्चाई बयान की है कि हैदराबाद के अख़बारात में अक्सर शादी की तक़ारीब की तसावीर शाय होती हैं जिन में उल्मा मशाइख़ को ख़ुशी ख़ुशी तस्वीरकशी करते हुए देखा जाता है । दुल्हों के साथ ये लोग तसावीर उतारने एज़ाज़ समझ कर इसराफ़ की शादी में शिरकत करते हैं । ख़ूब जी भर के खाते हैं और बेज़ार हो कर कई चीज़ें दस्तरख़्वान पर अधूरी छोड़ देते हैं एक तरफ़ ग़िज़ा की बेहुर्मती होती है ।
दूसरी तरफ़ बेजा इसराफ़ का अफ़सोसनाक मुज़ाहरा होता है । इस तरह की शादियों का बाईकॉट करने के बजाय उल्मा किराम , मशाइख़िन के इलावा सियासतदां और दानिश्वर तबक़ा भी मज़े लेकर महफ़िलों की ज़ीनत को बढ़ाते हैं । अक़ीक़ा हो या बिसमिल्लाह या सालगिरा हर तक़रीब , कितनी महंगी झूटी शान-ओ-शौकत और तअय्युशात से भरी करदी जा रही है कि गरीब-ओ-मुतवस्सित तबक़ा बादअज़ां अपनी तंगदस्ती पर मातम करता है । लोग ग़ुर्बत और तंगदस्ती की वजूहात पर ग़ौर करने के बजाय इस बुराई के दलदल में फंसते जा रहे हैं । आम आदमियों की ग़लती को नज़र अंदाज किया जा सकता है मगर उल्मा और मशाइख़ीन , साहब अक़ल और दानिश्वर तबक़ा के लोग भी इसी शान-ओ-शौकत वाली शादियों में शिरकत करने को तरजीह देते हैं तो गोया ये लोग इसराफ़ की तरग़ीब दे रहे हैं ।
होना तो ये चाहीए कि महबूबनगर , शादनगर , कुरनूल यह फिर निज़ाम आबाद की तरह दीगर तमाम बड़े शहरों और टाउंस में शादी के मौक़ा पर कम से कम अख़राजात की मुहिम चलाई जाय और जहां दावत के नाम पर अंधा धुंद ग़िज़ा को तबाह और पैसा को बर्बाद कर दिया जा रहा है उसे रोका जाय । बल्कि उन शादियों का बाईकॉट कर दिया जाय ।
इस तरह की शान-ओ-शौकत का मुज़ाहरा ने ही मुआशरा के दामन को मजमूई तौर पर आलूदा कर दिया है । इस के बावजूद मुतअद्दिद ऐसे ख़ानदान हैं जिन के अंदर उसूल पसंदी और एहतियात से काम लेने की आदत नहीं है । इस लिए मुस्लिम मुआशरा का हर फ़र्द ये अह्द करे कि वो शादियों में इसराफ़ को कम करेंगे और दावतों का एहतिमाम भी सिर्फ एक चावल , सालन और एक मीठे के साथ किया जाएगा । जिन दावत में हमा इक़साम की अशिया होँ या तअय्युशात का मुज़ाहरा किया जाता है ऐसी दावतों का बाईकॉट किया जाय ।।