शादीयों में इसराफ़ संगीन मसला, सियासत की तहरीक उम्मीद की किरण

हैदराबाद 07 सितंबर: हिजतुल-इस्लाम मौलाना मुहम्मद अली (मुक़ीम ईरान) ने मुस्लिम वालिदैन पर-ज़ोर दिया कि वो रिश्तों के इंतेख़ाब में दिनदारी और सीरत-ओ-किरदार को नुमायां एहमीयत दें और ख़ूबसूरती, दौलत और ज़ाहिरी शान-ओ-शौकत को मयार बनाने से गुरेज़ करें।

उन्होंने कहा कि शादीयों में लड़की वालों पर लेन-देन, जहेज़ और दावतों का एहतेमाम सरासर ज़ुलम के बराबर है। मौलाना मुहम्मद अली आबिद अली ख़ां आई हॉस्पिटल में इदारा सियासत और माइनॉरिटी डेवलपमेंट फ़ोर्म के ज़ेरे एहतेमाम मुनाक़िदा 46 वीं दु‍‍‍‍ बा‍‍ दु मुलाक़ात प्रोग्राम से ख़िताब कर रहे थे, जिसमें शीया मुस्लिम वालिदैन की बड़ी तादाद शरीक थी।

मर्कज़ी सीरत अलज़हरा कमेटी के तआवुन से मुनाक़िदा इस प्रोग्राम में कई शीया उल्मा, मोअज़्ज़िज़ीन और वालिदैन-ओ-सरपरस्तों ने शिरकत की। ज़हीरुद्दीन अली ख़ां मैनेजिंग एडीटर रोज़नामा सियासत ने सदारत की। मौलाना मुहम्मद अली ने कहा कि हिन्दुस्तान के बाहर कई ममालिक में शादी की सारी ज़िम्मेदारियाँ लड़कों और उनके वालिदैन पर होती हैं, लेकिन बदक़िस्मती की बात है कि हिन्दुस्तान हैदराबाद में सारे अख़राजात लड़की वालों पर आइद किए जाते हैं।

उन्होंने कहा कि हालात इंतेहाई नासाज़गार हो गए हैं, ग़ैर इस्लामी रस्म-ओ-रिवाज, लेन-देन की शर्त और इसराफ़ के नतीजे में बच्चों की शादियां एक संगीन मसला बन गई है।

हैदराबाद जो दुनिया में अपनी तहज़ीब, शराफ़त और रवादारी के बाइस मिसाली शहर बना रहा, आज इस शहर में शादी बियाह को एक कारोबार बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में मेहर को एहमीयत हासिल है, लेकिन हमारे मुआशरे में मेहर को ज़िमनी हैसियत दी जा रही है।

इन पुरआशूब हालात में सियासत की तहरीक उम्मीद की किरण बन कर उभरी है और यक़ीनन उस के नताइज बेहतर होंगे। उन्होंने एक खाना एक मीठा तहरीक को वक़्त की ज़रूरत क़रार दिया। मलिक के दुसरे इलाक़ों में दु-ब-दुमुलाक़ात प्रोग्राम की मक़बूलियत में रोज़ बरोज़ इज़ाफ़ा होता जा रहा है, इस की सबसे बड़ी वजह ये हैके लोग हैदराबादी शादीयों के अंदाज़ से बेज़ार हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि शादीयों में रसूमात की भरमार और पानी की तरह पैसा बहाने की जो रस्म चली है, इस से ना सिर्फ मईशत कमज़ोर हो रही है, बल्कि हमारे ख़ानदानी ताल्लुक़ात में भी दराड़ पड़ती जा रही है। ये सूरत-ए-हाल हमारे लिए बाइस इबरत है। दौलत मंदों के तर्ज़-ए-अमल से ग़रीब तबक़ात को ज़्यादा परेशानी लाहक़ हो रही है।

उन्होंने ग़रीब लड़कीयों की इजतेमाई शादीयों के निज़ाम को मुस्तहकम बनाने की ज़रूरत पर-ज़ोर दिया। ज़हीरुद्दीन अली ख़ां मैनेजिंग एडीटर रोज़नामा सियासत ने कहा कि सैकड़ों मुस्लिम लड़कों और लड़कीयों के रिश्ते दू-ब-दू मुलाक़ात प्रोग्राम में तै पा चुके हैं,