शाही चशमा बम रुक्न उद दौला हसन नगर के तहफ़्फ़ुज़ को यक़ीनी बनाने की ज़रूरत

नुमाइंदा ख़ुसूसी- शहर हैदराबाद का चप्पा चप्पा अपने अंदर सैंकड़ों दलकशियां रखता है । इस की तारीख , इस का तमद्दुन , उस की मुआशरत , उस की रवायात , उस की ख़ूबसूरत तरीन इमारतें और तारीख़ी आसार , ग़रज़ हर चीज़ ज़ौक़ रखने और मुताला करने वाले के लिए गूनागूं दिलचस्पियों का बाइस है । लेकिन उसे ज़माना की सितम ज़रीफ़ी या हमारी ना अहली कहिये कियूं के आहिस्ता आहिस्ता इस के तारीख़ी आसार को गहिरी साज़िश के तहत बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है । उन्ही में से एक शाही चशमा बम रुक्न उद दौला है ।

जिस के साथ आसिफ़ जाहि और निज़ाम हुकमरानों की सुनहरी तारीख वाबस्ता है । आज इस के साथ यतिमाना सुलूक अर्बाब हुकूमत की जानिब से रवा रखा जा रहा है । जिस के सबब नापाक ज़हनियत के हामिल अनासिर को अपने मक़ासिद बरुए कार लाने के मवाक़े फ़राहम होरहे हैं । ये बम रुक्न उद दौला रूबरू मीर आलम तालाब करीब नेशनल पुलिस के डेमी , हसन नगर में वाक़ै है । उसे आसिफ़ जाह सानी के वज़ीर आज़म नवाब मीर मुसा ख़ान रुक्न उद दौला ने 1765 में बनवाया था । इस के हवाले से तारीख़ी किताबों में लिखा है कि माहिरीन तिब्ब ने पूरे हैदराबाद-ओ-अतराफ़ के चश्मों का मुआइना करने के बाद शाही ख़ानदान को इस चशमा बम रुक्न उद दौला का पानी पीने की तलक़ीन की तभी से फ़लक नुमा महल , चौमुहल्ला और किंग कोठी के तमाम शाही महलात में इस तालाब का पानी इस्तिमाल किया जाने लगा जिस के लिए मख़सूस घोड़ा गाड़ी की मदद ली जाती थी ।

हता कि आख़िरी निज़ाम मीर उसमान अली ख़ां सफ़र-ओ-हज़र में यहीं का पानी इस्तिमाल करते , दौरान-ए-सफ़र ख़ुसूसी तौर पर ये पानी उन के लिए इरसाल किया जाता , नीज़ शहज़ादे , शहज़ादीयाँ , बेगमात ग़रज़ पूरा ख़ानदान शाही महीना में एक मर्तबा इस तालाब के पानी से ग़ुसल किया करता था । दूसरी चीज़ जिस से अक्सर लोग नाव वाफिक़ हैं कि उर्दू हरूफ़-ए-तहज्जी के ब की शक्ल पर उस की तामीर की गई जिस को फ़ारसी के आब का मुख़फ़्फ़फ़ कहा जा सकता है । ये तारीख़ी तालाब पहले पूरे साल लबालब भरा रहता था । अब सिर्फ बारिश के अय्याम में ही इस में कुछ पानी नज़र आता है । क्यों कि उसे चहार जानिब से इमारतों से घेर दिया गया है जिस की बिना पर पानी आने के तमाम रास्ते मस्दूद होचुके हैं और इस के अतराफ़ मैं ख़ुद रो जंगलात और दरख़्तों की भरमार होगई है ।

आस पास की गंदगी को ज़बत तहरीर में लाना मुश्किल है । काबिल तशवीश अमर ये है कि मंसूबा बंद साज़िश के तहत पूरे अतराफ़-ओ-अकनाफ़ की गंदगी , कूड़ा , कचरा , मिट्टी और मलबा वगैरह इस में लाकर डाला जा रहा है ताकि लैंड गराबरस एक ना एक दिन अपने मक़ासिद में कामयाब हूजाएं । बावसूक़ ज़राए से ये हैरत अंगेज़ ख़बर मिली है कि इस में मुलव्विस गैर नहीं अपनी ही मिल्लत के अफ़राद हैं । दौरान मुआइना कुछ हटे कटे हज़रात का सामना हुआ । जिन्हों ने हमारे ऊपर सवालात की बौछार करदी जिस का मक़सद ये था कि इस तारीख़ी तालाब से अवाम को वाक़िफ़ ना किराया जाय , चुनांचे एक साहिब ने कहा : क्यों गढ़े मर्दे उखाड़ रहे हो। इस के बारे में लिखने से किया हासिल । सवालात से उन का मक़सद साफ़ वाज़ेह हो रहा था कि किसी तरह से उसे मंज़रे आम पर ना लाया जाय ।

इन में से किसी ने भी अपनी शनाख़्त ज़ाहिर ना की । इस तारीख़ी तालाब को बम रुक्न उद दौला और नहर हुसैनी भी कहा जाता था । उस की तामीर 1765 -ए-। 1179 ह के मौक़ा पर यहां एक कुतबा लगाया गया था जो हाल ही में शरपसंदों की नज़र होगया । अब ये कुतबा और इस में मौजूद फ़ारसी , अशआर, नीज़ ये तालाब सिर्फ़ तारीख़ी किताबों के औराक़ की ज़ीनत हैं । सालार जंग अजाइब घर में मौजूद सौ साला क़दीम तारीख़ी किताब में इस कुतबा का और तालाब का तज़किरा मिलता है । किताब के मुताबिक़ कुतबा पर दर्ज ज़ैल शेअर कुंदा था :

चवां रुक्न दौला बनाम हुसैनी

बनाकरद अं चशमा फ़ैज़ आम

पी साल तारीख गुफ़्ता ख़िरद

बख़ुद आब सर्दी बयाद इमाम

इस शेअर के आख़िरी मिसरा बख़ुद आप सर्दी बयाद इमाम से इस की तामीर की तारीख ( 1179 ह ) निकलती है । नीज़ इस किताब में मर्क़ूम है कि इस मख़ज़न आब-ए-ने बह सर्फ़ा ज़ाती बनवाया था और बोज्ह हुस्न नियत इस का पानी इस क़दर ख़ुशगवार-ओ-लतीफ साबित हुआ कि अवाम-ओ-उमरा-ए-से गुज़र कर सलातीन आसफ़िया ने अपने आब-ए-ख़ासा के लिए इस को मख़सूस फ़र्मा लिया था इस को मौसी बम और नहर हुसैनी भी कहते हैं ।

एक तवील अर्सा तक सलातीन आसफ़िया की प्यास बुझाने वाले इस शाही चशमा के ताल्लुक़ से ख़ुदा नख़्वास्ता अगर शरपसंदों का मंसूबा कामयाब होता है तो इस का तज़किरा सिर्फ किताबों तक ही महदूद होकर रह जाएगा । लिहाज़ा अर्बाब मजाज़ और अस्हाब इक़तिदार से पुर ज़ोर अपील है कि फ़ोरा हरकत में आते हुए इस तारीख़ी शाही चशमा के तहफ़्फ़ुज़ को यक़ीनी बनाए ।

इस के अतराफ़ की ज़मीन को ख़ूबसूरत पार्क में बदल कर उसे तफ़रीही मुक़ाम बनाया जाय और इस तालाब के किनारे एक तआरुफ़ी बोर्ड नसब किया जाय ताकि मौजूदा और आइन्दा नसल को अपनी तारीख से आगही हासिल हो ।