नई दिल्ली: देश में इस समय तीन तलाक का मुद्दा राजनीतिक दलों के हाथों से निकलकर जनता के बीच पहुंच चुका है. लेकिन तीन तलाक का एक ऐसा मामला भी है, जिसने भारत के राजनीतिक इतिहास ही बदल दी थी. यह वह दौर था जब देश के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले को देश की संसद में पलट गया था. इस समय राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे, लेकिन आप को जानकर आश्चर्य होगा कि इस मामले को पलटवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कोई और नहीं बल्कि वर्तमान में भाजपा सरकार में मंत्री हैं.
ETV के अनुसार, यह 80 और 90 का दशक था, जबकि देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और राजीव गांधी देश के नमंत्री थे.
राजीव गांधी राजनीति में नए थे, लेकिन इंदिरा गांधी के जाने के बाद ही सरकार के सामने एक ऐसा मामला आया, जिसने कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक समझे जाने वाले मसलमानों में बेचैनी पैदा कर दी, और वह सड़कों पर निकल पड़े. यह मामला मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम का था. इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ फैसला आया और देश भर में चर्चा का विषय बन गया. यह मामला शाह बानो को गुजारे भत्ते देने को लेकर था. शाह बानो एक 62 वर्षीय महिला और पांच बच्चों की मां थी, जो 1978 में उसके पति ने तलाक थी.
सर्वोच्च न्यायालय ने उस समय अपने फैसले में कहा था कि आपराधिक प्रक्रिया की धारा 125, जो तलाकशुदा महिला को पति से गुजारा भत्ता का अधिकार देता है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 और मुस्लिम पर्सनल ला के प्रावधानों में कोई विरोधाभास नहीं है.
लेकिन इस मामले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि 1986 के इस बेहद विवादास्पद मामले में राजीव गांधी की तत्कालीन केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला अधिनियम पारित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. और इस दौर में इस फैसले को पलटने वाले कोई और नहीं बल्कि वर्तमान में भाजपा में मंत्री एम जे अकबर थे. पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला के अनुसार एमजे अकबर ने ही फैसले को पलटवाया था.
उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता से राजनीति में आए एमजे अकबर 1989-91 में बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद चुने गए थे. वह कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता भी रह चुके हैं. कभी मोदी की निंदा करने वाले एमजे अकबर ने बाद में पार्टी बदलते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया और मोदी की मौजूदा केंद्र सरकार में मंत्री हैं.
हबीबुल्ला इस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक के पद पर नियुक्त थे, और अल्पसंख्यक मामलों को देखते थे. एक अखबार में प्रकाशित अपने स्तंभ में हबीबुल्ला ने कहा कि यह फैसला उस समय का सबसे ऐतिहासिक फैसला था. उन्होंने कहा कि मैंने यह भी देखा कि अकबर, राजीव गांधी को इस बात पर राजी कर चुके थे कि अगर केंद्र सरकार शाह बानो मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो देश भर में ऐसा संदेश जाएगा कि प्रधानमंत्री मुस्लिम समुदाय को अपना नहीं मानते.
आपको बता दें कि मौजूदा केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से बहस शुरू की है, जिस पर मुस्लिम नेताओं ने गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त की है, और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता पर चर्चा के लिए गठित आयोग के बहिष्कार करने की घोषणा की है.