चराग़ देने लगेगा धुआँ न छू लेना
तू मेरा जिस्म कहीं मेरी जाँ न छु लेना
ज़मीं छुटी तो भटक जाओगे ख़लाओं में
तुम उड़ते उड़ते कहीं आसमाँ न छू लेना
नहीं तो बर्फ़ सा पानी तुम्हें जला देगा
गिलास लेते हुए उँगलियाँ न छू लेना
हमारे लहजे की शाइस्तगी के धोके में
हमारी बातों की गहराइयाँ न छू लेना
उड़े तो फिर न मिलेंगे रिफ़ाक़तों के परिन्द
शिकायतों से भरी टहनियाँ न छू लेना
मुरव्वतों को मुहब्बत न जानना ‘इरफ़ान’
तुम अपने सीने से नोके-सिनाँ न छू लेना
(इरफ़ान सिद्दीक़ी)