भारतीय जनता पार्टी हमेशा यह दावा करती है कि उसके शासित राज्यों में शासन व्यवस्था बहुत अच्छी है मगर यह दावा कम से कम मध्य प्रदेश के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। मध्य प्रदेश के करीब 5 हजार सरकारी स्कूल आज भी ऐसे हैं, जहां छात्र तो हैं मगर शिक्षक नहीं हैं।
इनमें बड़ी संख्या प्राथमिक स्कूलों की है। यानी जिस समय बच्चों को अक्षर ज्ञान के लिए शिक्षक की सबसे अधिक जरूरत होती है उसी उम्र में वे शिक्षक से महरूम होते हैं। बड़ी बात ये है कि मध्य प्रदेश में ऐसे स्कूलों की संख्या पिछले कई सालों से लगातार बढ़ रही है। इससे साफ है कि राज्य सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। दरअसल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट हाल ही में संसद में पेश की गई है, जिसमें मध्य प्रदेश सरकार को हर हाल में जल्द से जल्द स्कूलों में टीचर के खाली पद भरने को कहा गया है।
बिना शिक्षकों के स्कूल चलाने के मामले में मध्य प्रदेश देश में अव्वल है। यहां के 4 हजार 837 सरकारी स्कूलों में सालों से शिक्षक नहीं हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश में बगैर शिक्षकों के संचालित हो रहे सरकारी स्कूलों को लेकर यूनिफाइड डिस्ट्रिक्स इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) से रिपोर्ट तैयार करवाई है। यूडीआईएसई ने वर्ष 2015-16 को लेकर जो रिपोर्ट दी है, उसके तहत मप्र में सबसे ज्यादा सरकारी स्कूल शिक्षक विहीन हैं। इनमें ज्यादातर स्कूल प्राथमिक स्तर के हैं। तेलंगाना के 1944 ,आंध्रप्रदेश के 1339, छत्तीसगढ़ के 385 और उत्तरप्रदेश के 393 स्कूलों की ऐसी ही स्थिति
रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों के 19.48 लाख पद सृजित किए गए हैं, लेकिन 31 मार्च 2016 की स्थिति में 15.74 लाख शिक्षकों के ही पद भरे जा सके हैं। ऐसे में अब भी करीब 3.74 लाख शिक्षकों के पद भरे जाने हैं।