शिया वक्फ़ बोर्ड के वसीम रिज़वी ने अब हरे रंग के चांद- तारा वाले झंडे पर पाबंदी लगाने की मांग की, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर दी

तीन तलाक, हलाला के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल हुई है जिसमें इस्लाम के नाम पर चांद तारा वाले हरे झंडे लहराने पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है.

याचिकाकर्ता वसीम रिजवी की दलील है कि हरे कपड़े पर चांदतारा के निशान वाले मुस्लिम लीग के इस झंडे का इस्लामी मान्यताओं से कोई लेना देना नहीं. न तो हरा रंग और ना ही चांदतारा इस्लाम के अभिन्न अंग हैं. ये तो दुश्मन देश की राजनीतिक पार्टी का झंडा है.

इससे मिलता-जुलता पाकिस्तान का झंडा है और इस्लाम के नाम पर ऐसे झंडे लहराने वाले दरअसल पाकिस्तान के साथ खुद का जुड़ाव महसूस करते हैं.

शिया यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि दरअसल ये झंडा 1906 में बनी मुस्लिम लीग का था जो 1946 में खत्म हो गई.

देश के बंटवारे के जिम्मेदारों में से अहम किरदार निभाने वाली मुस्लिम लीग ने 1947 में पाकिस्तान में नया चोला पहना और नए नाम के साथ, लेकिन अपना झंडा और निशान वही चांदतारा वाला हर झंडा रखा.

उन्होंने कहा कि पार्टी उसी हरे चांद तारे वाले झंडे के साथ मुस्लिम लीग कायदे आजम के नाम से जानी गई. पाकिस्तान का झंडा भी मुस्लिम लीग के झंडे में ही एक सफेद पट्टी लगाकर तैयार किया गया. इस्लाम के नाम पर ऐसे झंडे इमारतों की छतों पर फहराना दरअसल अपने देश के संविधान, स्वतंत्रता और संप्रभुता का उल्लंघन है.

संविधान इसकी कतई इजाजत नहीं देता कि लोग धर्म या सेक्युलरिज्म की आड़ में दुश्मन देश की एक खास राजनीतिक पार्टी का झंडा अपने घरों, इमारतों या अन्य सार्वजनिक जगहों पर फहराएं.

रिजवी के मुताबिक इस्लाम में वैसे हरा नहीं बल्कि काला रंग ज्यादा अहमियत रखता है. हजरत मोहम्मद साहब को भी काला रंग ज्यादा पसंद था. तभी उनका एक नाम काली कमली वाले भी है. हदीस भी बताते हैं कि हजरत मोहम्मद साहब काला अमामा पहनते थे साथ ही काबा शरीफ पर गिलाफ भी काले रंग का ही है.

इतिहास गवाह है कि हजरत मोहम्मद साहब जब काबे में दाखिल हुए थे तो उनके हाथों में हरा नहीं बल्कि शांति और अमन का निशान सफेद झंडा लहरा रहा था. ना कि कोई हरा. सुप्रीम कोर्ट जल्दी ही इस याचिका पर सुनवाई करने वाला है.