शुरू हुई पहली इस्लामिक बैंकिंग सेवा, पहले दिन 12 लोगों को मिला ब्याज मुक्त लोन

महाराष्ट्र(सोलापुर):शुक्रवार को महाराष्ट्र के सोलापुर की लोकमंगल बैंक की बाश्री शाखा में देश की पहली इस्लामिक बैंकिंग सेवा शुरू हुई। इसमें पैसा जमा करने पर न तो कोई ब्याज मिलेगा और न ही बैंक से कर्ज लेने वालों को इंटरेस्ट देना पड़ेगा। पहले दिन ही 12 लोगों को एक लाख और 50 हजार का ब्याज मुक्त लोन दिया गया। इन लोगों को कर्ज देने की शिफारिस जमाकर्ताओं ने की थी, जिससे कर्ज वितरित करना आसान हो गया। आप को बता दें की कुछ दिन पहले रिजर्व बैंक ने केंद्र सरकार के समक्ष इस तरह के बैंक का प्रस्‍ताव रखा था। केंद्र सरकार ने इसे 11 सितंबर को मंजूरी प्रदान की। इस कॉन्सेप्ट को मूर्त रूप देने का निर्णय महाराष्ट्र के सहकारिता, विपणन व उद्योग मंत्री सुभाष देशमुख की और से किया गया। वे लोकमंगल बैंक के चेयरमैन भी हैं। शुक्रवार को मंत्री सुभाष देशमुख ने बाश्री में लोकमंगल बैंक की शाखा का उद्घाटन किया और यहीं इस्लामिक बैंक की सेवा शुरू की।

आखिर क्या है इस्लामिक बैंक

इस्लामी कानून यानी शरिया के सिद्धांतों पर काम करने वाली बैंकिंग व्यवस्था को इस्लामिक बैंकिंग कहा जाता है। इन बैंकों की खासियत यह है कि इनमें किसी तरह का ब्याज न तो लिया जाता है और न ही दिया जाता है।
इसमें बैंक को होने वाले लाभ को इसके खाताधारकों में बांट दिया जाता है। नियम के मुताबिक, इन बैंकों के पैसे गैर इस्लामी कार्यों में नहीं लगाए जा सकते।
इस तरह के बैंक जुए, शराब, बम-बंदूक, सुअर के मांस वगैरह के कारोबार में लगे लोगों का न तो खाता खोलते हैं और न ही उन्हें कर्ज देते हैं। कुछ देशों में इन बैंकों को चलाने के लिए इस्लामी विद्वानों की एक कमिटी होती है जो इनका मार्गदर्शन करती है।

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सबसे पहले मलेशिया में खुला था पहला इस्लामिक बैंक

दुनिया भर में पहला इस्लामिक बैंक मलेशिया में 1983 में स्थापित हुआ था।
इस्लामिक बैंकिंग स्कीम के तहत 1993 में कॉमर्शियल, मर्चेंट बैंकों और वित्तीय कंपनियों ने इस्लामिक बैंकिंग प्रॉडक्ट और सर्विसेज प्रस्तुत करने शुरू किए।
आज वैश्विक स्तर पर इस्लामिक फाइनेंस इंडस्ट्री का आकार बढ़ कर 1.6 लाख करोड़ डॉलर के पार पहुंच चुका है।
ऐसे काम करता है इस्लामिक बैंक
इस्लामी बैंकिंग का कॉन्सेप्ट इस्लाम के बुनियादी उसूल इंसाफ और सामाजिक न्याय पर आधारित है।
इस्लाम ब्याज के खिलाफ इसलिए है क्योंकि ब्याज की बुनियाद पर बने निजाम में बहुत सारे लोगों के पैसे कुछ चंद लोगों के हाथ में आ जाते हैं।
इसके मुकाबले जकात (बचत के एक हिस्से का दान) की व्यवस्था है, जिसमें कुछ लोगों का पैसा बहुत सारे लोगों के पास जाता है।
लेकिन इससे भारतीय कारोबारियों को किस तरह की मदद मिलेगी?
एक कारोबारी मेहनत करता है, उसकी मेहनत की भी कीमत लगनी चाहिए।
ब्याज की व्यवस्था के मुकाबले इस्लाम ये कहता है कि नफे और नुकसान में क़र्ज़ देने और लेने वाले दोनों ही बराबर के हिस्सेदार हैं।
यानी इस्लामिक बैंकिंग साझेदारी वाली व्यवस्था है। ऐसी व्यवस्था किसको कबूल नहीं होगी।”