शेर दिल बहादुर लड़की जीना चाहती थी

नई दिल्ली, 30 दिसंबर: (पीटीआई) इजतिमाई इस्मत रेज़ि की शिकार 23 साला लड़की 16 दिसंबर के बरबरीयत अंगेज़ वाक़िया में शदीद ज़हनी-ओ-जिस्मानी ज़ख्मों का पूरी हिम्मत-ओ-हौसले के साथ मुक़ाबला करते हुए ज़िंदा रहना और उसको ईज़ा पहूँचाने वालों को कैफ़र-ए-किर्दार तक पहूँचाने की ख़ाहिशमंद थी।

जुनूबी दिल्ली में इस शर्मनाक वाक़िया की शिकार होने के बाद सफदरजंग हॉस्पिटल में 19 दिसंबर को अपनी माँ और एक भाई से पहली मर्तबा बातचीत करते हुए इस बहादुर लड़की ने कहा था कि में जीना चाहती हूँ। बरबरीयत अंगेज़ वाक़िया के बाद दौरान-ए-इलाज वो इशारों के ज़रीया बदस्तूर अपनी बात पहूँचाती रही थी।

इसने ना सिर्फ़ अपने वालदैन से बातचीत की थी बल्कि मजिस्ट्रेट को एक नहीं दो मर्तबा अपना बयान भी दिया था। सफदरजंग हॉस्पिटल में 10 दिन तक ईलाज के दौरान माहिरीन नफ़सियात इससे रोज़ाना तीन मर्तबा मुलाक़ात किया करते थे जिनसे वो ना सिर्फ़ बातें किया करती थी, बल्कि मुस्तक़बिल के बारे में भी ख़्यालात का इज़हार करती थी, यहां तक कि 21 दिस‍ंबर को इसने सब डीवीजनल मजिस्ट्रेट के रूबरू अपना बयान कलमबंद करवाया था जिसके ज़रीया चलती बस में पेश आए अल-मनाक वाक़िया की तफ़सीलात बयान की थी जिनकी इसके मर्द साथी के बयान से पूरी तरह तौसीक़-ओ-तसदीक़ भी हुई है।

ईलाज करने वाले डॉक्टर्स उसकी सख़्त जान, आहनी अज़म और बहादुरी के मोतरिफ़ थे, हालाँकि उस वक़्त वो शदीद ज़हनी-ओ-जिस्मानी करब-ओ-इज़तिराब की शिकार थी। डाक्टरों ने उसको नफ़सियाती एतबार से पुरसुकून और मुस्तक़बिल के बारे में पुरउमीद क़रार दिया था।