हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला के समर्थन में उतरे छात्रों पर पुलिस ने जिस तरह से पिछले दिनों हमला किया वो नमूना है कि किस तरह से सरकार छात्रों के असंतोष को दूर करने की बजाय उनकी आवाज़ दबाने की भरसक कोशिश कर रही है. मीडिया में जो भी कुछ ख़बरे आ पायीं वो भी इतनी ख़तरनाक हैं कि अगर पूरी ख़बरें मीडिया में आई होतीं तो उसमें ना जाने क्या क्या ख़ुलासा होता.
अंग्रेज़ी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ जहाँ 25 गिरफ़्तार किये गए छात्रों में से एक छात्र अपने दर्द की दास्ताँ बयान कर रहा है, अपने आप में चौंकाने वाली है. छात्रों ने बताया कि किस तरह महिला-छात्रों को धमकी दी गयी, किस क़दर चिंता जनक हालात होंगे अगर एक लड़की को धमकी दी जाए “चुप रहो वरना तुम्हारा बलात्कार होगा”, क्या हालात हैं अगर पुलिस किसी छात्र से कह रही है कि “अपनी माँ-बहन के कपडे उतार के विडियो बना”.
पुलिस वालों ने पुरुष-छात्रों से कहा,”सेक्सी-लडकियां पढ़ती हैं, मज़े लो, पढो और घर जाओ…क्यूँ करते हो आन्दोलन”
आवाज़ को कुचलने की जिस तरह से कोशिश हो रही है उसमें पुरुषवादी मानसिकता के साथ साथ धार्मिक उन्मादी मानसिकता भी देखने को मिली.मुसलमान छात्रों को सिर्फ़ मुसलमान होने की वजह से मारा गया, उन्हें धार्मिक तौर पर गाली दी गयी.
जाती गत आधार पर दलित छात्रों को ज़लील किया गया और ना जाने क्या क्या.
पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से केंद्र सरकार ने आवाज़ दबाने की कोशिश की है वो शर्मनाक है, रोहित वेमुला को न्याय मिलना चाहिए लेकिन रोहित वेमुला के समर्थकों को सज़ाएँ मिल रही हैं. समझने की बात है हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र हों या जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के छात्र या किसी और यूनिवर्सिटी के, कोई भी छात्र हमारे देश के एक ढोंगी बाबा की तरह सिर्फ़ एक नारे के लिए सर काटने की बात नहीं कर रहे, न्याय के लिए लड़ रहे हैं.