शोपियाँ ख्वातीन (Shopian women) क़त्ल की तीसरी बरसी कश्मीर बंद

सख़्त गैर हुर्रियत कान्फ्रेंस के एक रोज़ा बंद के ऐलान के बाद कश्मीर में आम ज़िंदगी शदीद तौर पर मुतास्सिर ( प्रभावित) हुई। कान्फ्रेंस के सरबराह ( प्रबंधक) सैयद अली शाह गीलानी ने शोपियाँ की दो ख्वातीन की पुरासरार मौत की तीसरी बरसी के मौक़ा पर बतौर-ए-एहतजाज बंद का ऐलान किया था, जिसके बाद सड़कों से ट्रैफिक ग़ायब हो गई जब कि दुकानात और तिजारती इदारे (स‍स्थायें) भी बंद रहे।

स्कूल्स में भी तातील (छुट्टी/ अवकाश) का ऐलान कर दिया गया था जब कि लाल चौक जैसा मसरूफ़ तरीन इलाक़ा भी सुनसान नज़र आ रहा था। याद रहे कि मिस्टर गीलानी ने क़बल अज़ीं 29 मई को बंद का ऐलान किया था, लेकिन बादअज़ां उसे 30 मई कर दिया गया था।

दरअसल 29 मई को इत्तिफ़ाक़ से हिन्दू ख़ैर भवानी फेस्टीवल भी मुनाक़िद (आयोजित) किया जाने वाला था, जिस के बाद कश्मीरी पण्डित बिरादरी के कुछ अरकान ने गीलानी से मुलाक़ात करते हुए उन्हें बंद एक दिन आगे बढ़ा देने की दरख़ास्त की थी। शोपियाँ में आसीया और नीलोफर नामी दो ख्वातीन की तीन साल क़बल ( पहले) पुरासरार और दर्दनाक मौत हुई थी।

मुक़ामी अफ़राद का इद्दिआ (दावा) था कि आसीया और नीलोफर की नामालूम अफ़राद ने पहले इस्मत रेज़ि (बलात्कार/Rape) की और बादअज़ां उन्हें क़त्ल कर दिया था। ये नामालूम अफ़राद कोई और नहीं बल्कि सिक्योरिटी फ़ोर्सस के जवान भी हो सकते हैं। 2009 में जब ये वाक़िया (घटना) मंज़रे आम पर आया था तो इस के ख़िलाफ़ एक माह तक एहतिजाज का सिलसिला चलता रहा था, लेकिन सी बी आई की रिपोर्ट ने सब को चौंका दिया था, जिस में कहा गया था कि आसीया और नीलोफर की इस्मत रेज़ि और क़तल नहीं हुआ बल्कि वो डूब कर हलाक हुई थीं।

शहर के सियोल लाइंस इलाक़ा में बंद का मिला जुला असर देखा गया, जहां बेशतर ( ज्यादातर) दुकानात खुली थीं और सड़कों पर ट्रैफिक भी हसब-ए-मामूल जारी था।