शोपियां गोलीकांड: केंद्र ने कहा- राज्य सरकार को सेना पर एफआईआर का हक नहीं

शोपियां गोलीकांड मामले को लेकर केंद्र और जम्मू एवं कश्मीर सरकार आमने-सामने हो गई है। जहां केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकार को सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है, वहीं राज्य सरकार का कहा है कि उसे यह अधिकार है। साथ ही राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जांच पर अनिश्चितकाल के लिए रोक नहीं लगाई जा सकती। मालूम हो कि गत फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने के समक्ष जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने कहा कि राज्य सरकार को सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है।

राज्य सरकार ने यह भी कहा कि मामले की जांच पर अनिश्चितकालीन रोक नहीं लगाई जा सकती। राज्य सरकार ने कहा कि इस मामले की सुनवाई न टाली जाए, वह बहस करने को तैयार है। इसके अलावा जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने गुहार लगाई कि इस मामले में सभी राज्यों को पक्षकार बनाया जाए, लेकिन पीठ ने उस आग्रह को ठुकरा दिया। मालूम हो कि गत फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच पर रोक लगा दी थी। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि बिना उसकी इजाजत के राज्य सरकार को सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है।

अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा एएफएसपीए(आस्फा) केतहत राज्य सरकार को सेना केखिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी है या नहीं? साथ ही सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि लेफ्टीनेंट जनरल करमवीर सिंह की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं?

मालूम हो कि गत 27 जनवरी को सेना द्वारा शोपियां में की गई एक कार्रवाई में तीन आम लोगों की मौत हो गई थी। 10 गढ़वाल राइफ्ल्स में मेजर आदित्य कुमार के पिता करमवीर सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि एफआईआर में उसके बेटे का नाम गलत और मनमाने तरीके से किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि सेना का काफिला केंद्र सरकार के निर्देश पर जा रहा है और सेना अपने कर्तव्यों का पालन कर रही थी। सेना के ओर से तब कार्रवाई की गई जब भीड़ ने पथराव किया गया। कुछ जवानों को पीट-पीट कर मारने की कोशिश की गई।

देश विरोधी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई को सेना ने रोकने की कोशिश की। याचिका में कहा गया कि मेजर आदित्य का इरादा सेना केजवानों और संपत्तियों को नुकसान होने से बचाना था। हिंसक भीड़ को वहां से हटने का आग्रह किया गया।

भीड़ से आग्रह किया गया है वे सेना केकाम में बाधा पहुंचाने की कोशिश न करें और सरकारी संपत्तियों को नुकसान न किया जाए। लेकिन हालात बेकाबू होने पर भीड़ को तितर-बितर होने के लिए कहा गया। हालात उस वक्त अपने चरम पर पहुंच गया जब उग्र भीड़ एक सैन्य अधिकारी को पकड़ लिया और उसे जान की मारने की तैयारी करने लगे। जिसके बाद सेना को कार्रवाई करनी पड़ी।