एक मुसव्वदा क़ानून जिस में ख़ातून को इसके शौहर की जायदाद में हिस्सा हासिल करने का हक़ हो जाएगा। आज मर्कज़ी काबीना की जानिब से मंज़ूर कर दिया गया। इस मुजव्वज़ा क़ानून के तहत ख्वातीन को अपने शौहर की जायदाद में हिस्सा हासिल होने के इलावा शादी क़वानीन (तरमीमी) बिल 2010 में भी तरमीम की जाएगी, जिसका मक़सद मतबनी बच्चों को हयातयाती बच्चों के मुसावी हुक़ूक़ दिए जाएं।
मर्कज़ी काबीना के इजलास में जिसकी सदारत वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह कर रहे थे, इस बिल को मंज़ूरी दे दी गई। शादी क़वानीन (तरमीमी) बिल 2010 दो साल क़ब्ल अगस्त में राज्य सभा में पेश किया गया था और उसे पारलीमानी मजलिस क़ायमा बराए क़ानून, इंसाफ़ और पर्सनल को रवाना किया गया था।
इस बिल की ताईद करते हुए जो चाहता है कि शादी के नाक़ाबिल तंसीख़ ख़ातमा को तलाक़ की नई बुनियाद बनाया जाए। मजलिस क़ायमा ने गुज़श्ता साल मार्च में तलाक़ के लिए इंतेज़ार की मुद्दत का ताय्युन किया था और इसके बाद शादी को कुलअदम क़रार देने केलिए मुशतर्का दरख़ास्त ज़ोजीन की जानिब से पेश करने का लज़ूम भी आइद था।
सिफ़ारिशात को जुज़वी तौर पर कुबूल करते हुए हुकूमत ने अब फ़ैसला किया है जि इंतेज़ार की मुद्दत के बारे में फ़ैसला अदालतें करेंगी। मुसव्वदा क़ानून की अज़सर नौ तहरीर के बाद काबीना ने इसकी मंज़ूरी देते हुए कहा कि मतबनी बच्चों को हयातयाती बच्चों के मुसावी हुक़ूक़ हासिल होंगे अगर वालदैन तलाक़ के लिए दरख़ास्त दें।
हुकूमत ने पारलीमानी कमेटी की इन सिफ़ारिशात को भी मंज़ूरी दी है कि ख़ातून को तलाक़ की सूरत में शौहर की जायदाद का कितना हिस्सा दिया जाए इस का फ़ैसला भी इन्फ़िरादी वजूहात की बिना पर अदालतें करेंगी।