होटल में रुके सहारनपुर की साकिन सविता और उसके शौहर भी महफूज़ ठिकाने की तलाश में बाहर निकले। होटल के बाहर बाढ़ जैसे हालात में हर तरफ मौत की गूंज थी। सविता और उसके शुहर एक-दूसरे का हाथ थामे पहाड़ पर ऐसी जगह की तलाश कर रहे थे, जहां पानी का बहाव न हो। तलाश करते करते में सुबह हो गई।
पीर के दिन पानी और मलबे के साथ आया झोंका सविता के शौहर को लगा। वह ज़ख्मी हो गए, बहादुर सविता ने शौहर का हाथ नहीं छोड़ा। मलबे से बचाया तो वह बेहोश थे। मदद के लिए घंटों चीखती रही, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। शौहर को खो चुकी सविता ने लाश को महफूज़ वाली जगह रखा और बारिश रुकने, मदद मिलने का इंतेजार करती रही।
मंगल की रात इंतेज़ामिया की टीम ने शौहर की लाश के साथ फफकती सविता से घर का पता और मोबाइल नंबर लिया। मंगल की सबह 5:30 बजे सविता के बेटे मुकेश नागपाल को इंतेज़ामिया ने वालिद सुरेंद्र नागपाल की मौत की खबर और मां के जिंदा होने की इत्तेला दी। मुकेश तीन घंटे बाद मंगल की सुबह सहस्रधार वाकेए हैलीपैड पहुंच गये थे। सुबह से शाम तक बदरीनाथ जाने के लिए इंतेजाम में लगे रहे।
वे हैलीपैड मुंतज़मीन से रो-रो कर ले जाने की गुहार लगाते रहे लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। मुकेश ने बताया कि उन्हें बदरीनाथ ले जाने के लिए दो लाख रुपये मांगे जा रहे थे। लेकिन इतनी रकम एडवांस देने के लिए उनके पास नहीं थी।
रात भी हैलीपैड पर बीत गई, मां ने एक सिपाही के सहारे उससे राबिता किया। लेकिन वह करते तो क्या? बुध की सुबह जो भी हैलीपैड पहुंचा रोते मुकेश उसी से मां-पिता के पास तक एक बार पहुंचाने की गुहार लगा रहे थे। दोपहर दस बजे हैलीपैड पहुंचे साकेत बहुगुणा को देखकर वह उनके आगे बार-बार हाथ जोड़कर रोए।
साकेत ने कंपनी मुंतज़मीनो (संचालको) से उसे बदरीनाथ पहुंचाने को कहा और खुद चॉपर में सवार होकर मातली चले गए। तब जाकर उसे कंपनी के मुंतज़मीन बदरीनाथ ले गए। वालिद कि आखिरी रसूमात करने के बाद मुकेश ने दून में मौजूद साथी को इत्तेला दी। मुकेश अपनी मां समेत अभी बदरीनाथ में ही फंसे हुए हैं।
———बशुक्रिया: अमर उजाला