श्रीलंका राजनीतिक संकट: संसद को किया गया भंग!

श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे गुट और रानिल विक्रमसिंघे गुट के बीच तनातनी को देखते हुए राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरीसेना ने शुक्रवार को संसद भंग करने का आदेश दिया. श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति और नवनियुक्त प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे संसद में बहुमत के जादुई आंकड़े 113 से अब भी दूर हैं. संसद के सदन में बहुमत साबित करने से कुछ दिन पहले शुक्रवार को उनके प्रवक्ता ने यह जानकारी दी.

प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बरखास्त कर राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के कदम के बाद से श्रीलंका में संवैधानिक संकट जारी है. ‘यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम एलायंस‘ (यूपीएफए) के प्रवक्ता केहेलिया रम्बुकवेला ने राजपक्षे का समर्थन करने वाले सांसदों की कुल संख्या बताए बिना पत्रकारों से कहा, ‘अभी हमें 105 से 106 सांसदों का समर्थन हासिल है.’

सिरिसेना ने पहले एक जनसभा में दावा किया था कि उन्हें 225 सदस्यीय सदन में 113 सांसदों का समर्थन हासिल है. इससे पहले सिरीसेना ने फैसला किया कि श्रीलंका में मौजूदा राजनीतिक और संवैधानिक संकट खत्म करने के लिए कोई मध्यावधि चुनाव या राष्ट्रीय जनमत संग्रह नहीं कराया जाएगा.

सिरीसेना की ‘श्रीलंका फ्रीडम पार्टी’ (एसएलएफपी) के महासचिव रोहन लक्ष्मण पियादासा ने गुरुवार की रात पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में बताया, ‘नहीं, संसद नहीं भंग की जाएगी और न ही जनमंत संग्रह होगा.’

पियादासा ने इन अफवाहों पर विराम लगाने की कोशिश की कि सिरीसेना संसद भंग करने के साथ समय से पहले चुनाव कर सकते हैं. संसद का कार्यकाल अगस्त 2020 तक है. गौरतलब है कि सिरीसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर उनकी जगह उनके विरोधी महिंदा राजपक्षे को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया.

इससे देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया. विक्रमसिंघे ने इसे मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने संसद में अपनी बहुमत साबित करने के लिए संसद का सत्र बुलाने की मांग की. सिरीसेना ने संसद 14 नवंबर तक निलंबित कर दिया है.

साभार- ‘आज तक’