अली मोहम्मद अल निमर को तीन साल पहले जब गिरफ्तार किया गया था तो वो महज17 साल का था. निमर को हुकूमत मुखालिफीन सरगर्मियों में हिस्सा लेने और फायर-आर्म्स रखने के इल्ज़ाम में सूली पर चढ़ाकर मौत की सज़ा सुनाई गई थी.
इस सज़ा के ख़िलाफ़ निमर की आखिरी अपील को भी सऊदी हुकूमत ने ठुकरा दिया है. अब निमर के पास सज़ा के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई लड़ने का कोई आप्शन नहीं बचा है.
इंटरनेशनल बिज़नेस टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा लगता है कि निमर पर उनके चचा शेख निमर अल निमर की वजह से सख्त रुख अपनाया गया. शेख निमर अल निमर मज़हबी लीडर होने के साथ सऊदी हुकूमत के सख्त खिलाफ तन्कीद करने वाले माने जाते हैं. उन्हें भी मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी है. शेख निमर की मौत की सज़ा पर कभी भी अमल हो सकता है. वहीं उनके भतीजे निमर को भी कुछ ही दिन में सूली पर लटकाया जा सकता है.
इंसानी हुकूक कारकुनो का कहना है कि नौजवान निमर को परेशान किए जाने के साथ वकीलों तक पहुंचने का भी मौका नहीं दिया गया. साथ ही उस पर दबाव डालकर ‘जुर्म का इकबाल’ कराया गया. इन कारकुनों का कहना है कि निमर के पास फायर-आर्म्स होने का कोई सबूत नहीं है. उसके ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने में बनुल अक्वामी नियमों की पूरी तरह अनदेखी की गई.
क़ानूनी मदद करने वाली इदारा रिप्राइव के वकील का कहना है कि निमर को जब गिरफ्तार किया गया था तो वो बच्चा था. उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि हुकूमत मुखालिफीन मुज़ाहिरो में उसके चचा के किरदार को लेकर हुकूमत नाराज़ थी.