पाकिस्तान की नई सरकार ने कहा है कि सऊदी अरब चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर प्रोजेक्ट में अरबों डॉलर का निवेश कर सकता है. यह बात ईरान को कतई पसंद नहीं आ सकती जो हमेशा सऊदी अरब के हर कदम को शक की नजर से देखता है.
पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट में फंसा है और वह सऊदी अरब से मदद मांग रहा है. पिछले दिनों सऊदी अधिकारियों की एक टीम ने पाकिस्तान का दौरा भी किया, ताकि तेल और खनिज के क्षेत्र में निवेश के समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकें. स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि कोशिश चीनी ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को पाकिस्तान के ग्वादर से ओमान और सऊदी अरब के रास्ते अफ्रीका तक ले जाने की है.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर (सीपैक) परियोजना के तहत पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर का निवेश करने का एलान किया था. लेकिन पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के चलते सीपैक के बहुत से प्रोजेक्ट ठीक से लागू ही नहीं हो पाए.
अब पाकिस्तान में नई सरकार बनने के बाद चीन लगातार नजर बनाए हुए है कि पाकिस्तान की सरकार सीपैक को लेकर क्या कदम उठाती है. चीन और पाकिस्तान इसमें किसी तीसरे देश को शामिल करने के बारे में तो एकमत हैं, लेकिन चीन अब भी पाकिस्तान को इस बात के लिए तैयार कर सकता है कि कुछ निश्चित देशों को इसमें शामिल ना किया जाए.
इसके अलावा सऊदी अरब पश्चिमी देशों का अहम सहयोगी है. ऐसे में चीन के नेतृत्व में किसी आर्थिक परियोजना में उसकी भागीदारी बदलते भूराजनैतिक परिदृश्य को लेकर कई सवाल पैदा करती है. ईरान कभी नहीं चाहेगा कि सऊदी अरब उसकी सीमा के नजदीक आ बैठे.
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार में पोत और जहाजरानी मंत्री रहे मीर हासिल खान बिजेंजो कहते हैं, “ग्वादर ईरान के चाबहार पोर्ट के नजदीक है. इसके अलावा वहां से रेको डिग परियोजना भी दूर नहीं है.
यह परियोजना ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी जाहेदान के करीब चल रही है. वहां सुन्नी चरमपंथी भी सक्रिय हैं. ऐसे में ईरान को ग्वादर पोर्ट में सऊदी अरब के निवेश से क्यों दिक्कत नहीं होगी.”