सच्चर कमेटी के 10 साल, मुस्लिम बहुल सीटों को अनारक्षित करने की मांग

जस्टिस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के 10 साल पूरा होने पर सोशलिस्‍ट युवजन सभा (एसवाईएस), पीयूसीएल और खुदाई खिदमतगार ने दिल्‍ली में 22 दिसंबर को एक संगोष्‍ठी का आयोजन किया। संगोष्‍ठी का मकसद यह जानना था कि कमेटी की सिफारिशों पर पिछले दस सालों में कितना अमल हुआ है। सोशलिस्‍ट पार्टी के अध्‍यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने संगोष्‍ठी का परिचय देते हुए कहा कि इस विषय पर यह संगोष्‍ठी आगे की जाने वाली चर्चाओं की पहली कड़ी है। इसमें बुदि्धजीवियों और मुस्लिम समुदाय के प्रमुख संगठनों के नमाइंदों को वक्‍ता के तौर पर बुलाया गया है।

बाद में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नुमाइंदों को भी बुलाया जाएगा। ताकि वे बता सकें कि उनकी सरकारों ने केंद्र और राज्‍यों के स्‍तर पर सच्‍चर कमेटी की सिफारिशों को किस हद तक लागू किया है। पहले सत्र के अध्‍यक्ष वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट ने असलियत से पर्दा उठाने का काम किया है। मुस्लिमों को उनके अधिकार मिलें। आज के समय में मुस्लिमों की स्थिति बद से बदतर हुई है। उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं हो रहा है।

पहले राजनीति को मजहब से नहीं जोड़ा जाता था। मगर आज राजनीति पर मजहब हावी हो गया है। संविधान के तहत सभी समान है। हम सभी को अपना दिल टटोलना चाहिए कि हम कैसा समाज चाहते हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आज भी उतनी प्रासंगिक है जितनी वह पहले थी।

सच्‍चर कमेटी के सदस्‍य रहे प्रो. टी.के ओमन ने कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट एक जाना-माना ऐतिहासिक दस्तावेज है। इस रिपोर्ट के जरिए मुस्लिम समाज के बहाने पूरी भारतीय समाज की झलक मिलती है। मनुष्य को जीवन जीने के लिए सिर्फ रोटी ही नहीं बल्कि समानता, सुरक्षा, पहचान और सम्मान भी चाहिए। आज अल्पसंख्यक समुदाय में जिन लोगों के पास भौतिक संसाधन मौजूद हैं उन्हें भी नागरिक के नाते सम्मान नहीं मिलता जिसके वे संविधान के तहत वह अधिकारी हैं। सुरक्षा की जब हम बात करते हैं तो हम शारिरिक हिंसा को ही हिंसा मानते हैं मगर हिंसा संरचनात्मक और प्रतीकात्मक भी होती है जिसे समझना अति आवश्यक है।

मुसलमानों को इस तरह की हिंसा का अक्‍सर सामना करना पडता है। उदाहरण के लिए उन्‍हें बीफ खाने का वाला बताने का मामला मनोवैज्ञानिक और मानसिक उत्पीड़न का जीता-जागता उदाहरण है। मुस्लिम को शक की निगाह से देखा जाता है। हालांकि असमानता सभी समुदायों में देखने को मिलती है मगर जो असममानता किसी समुदाय विशेष का सदस्य होने से पैदा हुई हो यह एक बडी समस्या है।
सच्‍चर कमेटी में सरकार की तरफ से ओएसडी नियुक्‍त किए गए सईद महमूद जफर ने बताया कि मुस्लिम भारत में 14.2 प्रतिशत हैं। जो तमाम अल्पसंख्यक समुदायों के 73 प्रतिशत हैं। अनुच्छेद 46 में समाज के कमजोर वर्गों को विशेष देखरेख का प्रावधान है।

सच्चर कमेटी की रिर्पोट के अनुसार मुस्लिम समाज सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर खासा पिछड़ा हुआ है और 2006 से इनका स्तर नीचे गिरता जा रहा है। कमेटी की सिफारिशों में से अब तक मात्र 10 प्रतिशत ही लागू किया गया है। इसका एक बडा कारण प्रशासनिक पदों पर मुस्लिमों का नामात्र का प्रतिनिधित्व भी है।