मैदान कर्बला में एन दोपहर के वक़्त जब इमाम हुसैन (रज़ी अल्लाह हु तला अन्हु) ने यज़ीदी लश्कर को ख़िताब करते हुए फ़रमाया ऐ लोगो मेरे नानाजान हुज़ूर आकरम (स०अ०) का इरशाद है, बुराई को होता हुआ देखो तो हाथ से रोको, अगर इसकी इस्तिताअत नहीं तो ज़बान से रोको अगर इतनी भी सकत नहीं तो दिल में बुरा समझो , लेकिन ये इमान की कमज़ोरी की अलामत है ।
इतने में अज़ली बदबख़्तों ने इमाम आली मक़ाम पर तीरों की बारिश की और अपने नरग़े में ले लिया ।
घात लगाकर पीछे से वार किया गया । घोड़े से निढाल हो कर ज़मीन पर आए तो आप (स०अ०)ने अपने ख़ून आलूद हातों से कर्बला की रेत पर तयम्मुम किया और सजदे की हालत में होगए ।
आप ज़बान से सुबहान रब्बियल आला तस्बीह गूंज रही थी। कर्बला के मैदान में अदा होने वाले उस सजदे पर ख़ुदा को भी नाज़ है । इन ख़्यालात का इज़हार हज़रत मौलाना ग़ुलाम नबी शाह नक़्शबंदी ने डाक्टर सिराज विला हुमायूँ नगर मुत्तसिल मस्जिद अज़ीज़िया में महफ़िले शहादत इमाम हुसैन (रज़ी). को मुख़ातिब करते हुए किया । डाक्टर मुहम्मद सिराजुल रहमन नक़्शबंदी सिविल सर्जन ने नमाज़ की अहमियत और रज़ाए ईलही पर भी रोशनी डाली।