जिस रोज़ पर्दा उठाया जाएगा एक साक से तो उन (नाबकारों) को सजदा की दावत दी जाएगी तो उस वक़्त वो सजदा ना करसकेंगे। (सूरत उल-क़लम।४२)
जब कोई सख़्त तकलीफ़देह और मसीयत का वक़्त आजाता है तो अहल अरब ये मुहावरा इस्तिमाल करते हैं। जब घमसान की लड़ाई शुरू हो जाती है तो कहते हैं कि जंग ने अपनी पिंडली से तहबंद उठा लिया।
राजज़ कहता है: ए बहादुरो! लड़ाई ने अपनी पिंडली नंगी करदी है तो सब ज़ोर से हमला करो, जंग ज़ोरों पर है, अब तुम भी संजीदगी से दाद शुजाअत दो।
जिस साल क़हत इंतिहा को पहुंच जाये, इस का ज़िक्र यूं करते हैं: ये इस साल की बात है, जिस ने अपुन पिंडली नंगी करदी। इस मुहावरा के मुताबिक़ आयत का मानी होगा: रोज़ क़ियामत जब हालात बड़े तकलीफ़देह और होलनाक हो जाऐंगे और हर शख़्स जलाल ख़ुदावंदी से लर्ज़ा बरानदाम होगा, चेहरों पर हवाईयां उड़ रही होंगी, दिल ख़ौफ़ से धड़क रहे होंगे, उस वक़्त लोगों के ईमान या कुफ्र, ख़ुलूस या नफ़ाक़ को आशकार करने के लिए उऩ्हें हुक्म दिया जाएगा कि आव सब अपने रब को सजदा करो।
जिन के दिलों में ईमान और इख़लास होगा, वो तो फ़ौरन सर बह सुजूद हो जाऐंगे, लेकिन काफ़िर और मुनाफ़िक़ बहुत ज़ोर लगाऐंगे कि सजदा करें और ख़ून लगाकर शहीदों में शामिल हो जाएं, लेकिन उनकी कमर अकड़ जाएगी, यानी बड़ी कोशिश के बावजूद वो सजदा ना करसकेंगे।
इस रुसवाई पर आँखें झुक जाएंगी, सब के सामने उनके कुफ्र-ओ-नफ़ाक़ को ज़ाहिर कर दिया गया, उनके खोखले दावों का भांडा फूट गया और ज़िल्लत-ओ-रुसवाई की गर्द उनके चेहरों पर पड़ रही होगी।