सजा की मुद्दत तय करेगी लालू की जमानत

चारा घोटाले में सीबीआई की खुसूसी अदालत की ओर से सजा सुनाए जाने के बाद लालू यादव एक महीने के अंदर झारखंड हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं।

लेकिन फिलहाल जमानत उन्हें तभी मिलेगी, जब उन्हें तीन अक्तूबर को तीन साल से कम की सजा सुनाई जाए। IPC और Prevention of Corruption Act के जिन दफआत में उन्हें मुज़रिम ठहराया गया है उनमें कम से कम सजा तीन साल है।

अगर किसी एक दफआ ( Act) में तीन साल से ज़्यादा की सजा दी गई तो ट्रायल कोर्ट उन्हें जमानत पर रिहा नहीं कर पाएगा। उसके बाद हाईकोर्ट ही लालू और उनके साथ सजा पाए मुल्ज़िमो को जमानत से सकता है।

Representation Law Section 8(4) को ग़ैर आइनी (Unconstitutional) करार देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से लालू लोकसभा की मेम्बरशिप बरकरार नहीं रख पाएंगे।

10 जुलाई से पहले MPs और MLAs को Representation of the Act 8(4) की तहफ्फुज़ फराहम करती थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गैर आइनी करार दिया।

इलेक्शन कमीशन फैसले पर अमल के लिए नोटिस जारी कर चुका है। जबकि पार्लियामेँट की रुक्नियत बरकरार रखने का आर्डिनेंस पहले ही दफन हो गया।

हालांकि हाईकोर्ट में अपील दायर करने के साथ-साथ सजा को मुअत्तल कर जमानत की अपील/ दरखास्त करने का हक लालू के पास है। आमतौर पर हाईकोर्ट सजा को ही मुअत्तल करती हैं और ज़ुर्म की संजीदगी की बुनियाद पर जमानत पर छोड़ने का फैसला लेती हैं।

सजा और साबित कुसूर दोनों को मुअत्तल करने की दर्खास्त लालू हाईकोर्ट से कर सकते हैं। लेकिन साबित कुसूर को अली अदालतें मुअत्तल करने से बचती हैं।
Prevention of Corruption Act के तहत मुज़रिम ठहराए जाने की वजह से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद दो साल की सजा के दायरे से भी बाहर हो गए।

Representation of the Act 8(1) में कुछ जुर्म इतने संगीन माने गए हैं जिनमें अदालत की ओर से मुजरिम ठहराए जाने पर ही शख्स पार्लियामेंट की रुक्नियत के नाअहल करार दिया जाता है। इसके इलावा वह अगले छह साल तक इलेक्शन नहीं लड़ सकता।