आम तौर पर लोग अल्लाह अज़्ज़ो वज़ल से यही दुआ करते हैं कि उन्हें आग, पानी, हादिसात, ख़ुदकुशी, ख़ुदसोज़ी और अपने शहर अपने घर से दूर की मौत से महफ़ूज़ रखे। इस लिए कि एक ऐसा मुक़ाम पर जहां अपना कोई ना हो किसी को मौत आजाए तो इस के साथ मौजूद बीवी बच्चों का हाल नाक़ाबिले बयान हो जाता है।
लेकिन ये भी हक़ है कि जिस की जहां और जिस वक़्त और जिन हालात में मौत लिखी जाती है वो हो कर ही रहती है ताहम इंसानी रिश्ते इंतिहाई जज़बाती होते हैं और जब किसी नौजवान बीवी के सामने एक अजनबी शहर में उस का शौहर हादिसा का शिकार हो कर मौत की नींद सो जाता है तो ऐसे में जब कि वहां दिलासा देने वाला अपना कोई ना हो उस बीवी के ग़म का क्या हाल होगा ये सोच कर ही सारा वजूद काँप उठता है।
इस मंज़र से दर्दनाक तो वो मंज़र होता है जब दो कमसिन लड़कियां अपनी ग़मज़दा माँ की दो जानिब बैठे हों और एक दो फ़ुट के फ़ासिला पर बाप की नाश रखी हो माँ पर शिद्दत ग़म से सक्ता तारी हो जब कि7 और 4 साला लड़कियां अपने बाप की नाश को देखते “अब्बू को बू हुआ अब्बू को बू हुआ” की रट लगाए हों। ये ऐसा दर्दनाक मंज़र है जिसे देख कर पत्थर दिल इंसान भी पिघल जाए।
क़ारईन ये दर्दनाक वाक़िया यू पी से ताल्लुक़ रखने वाले कारपेन्टर 40 साला मुहम्मद शेख के साथ पेश आया जो पंजागुट्टा में एक गुत्तादार के लिए काम किया करते थे। उस शख़्स ने दामने इस्लाम में पनाह लेने के बाद शोलापुर महाराष्ट्रा की रहने वाली रिज़वाना बेगम से शादी की थी। ये जोड़ा और उन की दो बेटियां7 साला सानिया और 4 साला सना गुज़िश्ता 8 बर्सों से श्रीराम नगर कॉलोनी आराम घर हैदराबाद में मुक़ीम थे।
किराया के मकान में मुक़ीम मुहम्मद शेख और उन की 27 साला बीवी रिज़वाना बेगम हंसी ख़ुशी के साथ ज़िंदगी गुज़ार रहे थे कि हफ़्ता 7 सितंबर उन की ज़िंदगी का यौम स्याह साबित हुआ। मुहम्मद शेख ऑटो में बैठे मेह्दीपट्नम रोड से गुज़र रहे थे कि एक तेज़ रफ़्तार कार की ज़द में आने के बाइस बरसर मौक़ा हलाक हो गए।
जब कि घर में रिज़वाना बेगम अपनी कमसिन बेटियों की मासूम बातों से महज़ूज़ हो रही थीं। खेल खेल में लड़कियां अपने वालिद को याद करती जातीं और कहती कि आज अब्बू हमारे लिए बिस्किटस चॉकलेट्स और मेवे लाएंगे लेकिन क़ुदरत को कुछ और ही मंज़ूर था। ड्राईवर ने वापसी पर बताया कि ये ख़ानदान बहुत गरीब है और वहां भी वो किराए के मकान में मुक़ीम हैं।
लोगों ने बाद नमाज़े फ़ज्र ही तदफ़ीन का प्रोग्राम बनाया था। बहरहाल हमारे शहर में ऐसे कितने मुहम्मद शेख होंगे जो एक अच्छी ज़िंदगी की तलाश में यहां आए होंगे लेकिन ज़िंदगी ने उन के साथ वफ़ा ना की हो। इसी तरह उसी कई रिज़वाना भी होंगी जो शिद्दत ग़म के मारे कुछ बोलने से क़ासिर होंगी। हम यही दुआ कर सकते हैं कि रब्बे ज़ूलजलाल सब पर रहम फ़रमाए। ( आमीन )