हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम को भाईयों ने कुँवें में डाल दिया तो एक क़ाफ़ला वालों ने इन को ग़ुलाम बना लिया और शहर मिस्र में आकर उन को बेच दिया । हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम की लड़कपन की उम्र थी । मिस्र में इन का अपना रिश्तेदार या दोस्त कोई नहीं था । ज़ाहिरी तौर पर बे यार-ओ-मददगार थे बिलकुल बेसहारा थे । वक़्त के साथ जब भरपूर जवानी की उम्र को पहुंचे तो अज़ीज़ ए मिस्र (मीस्र के बादशाह ) की बीवी ज़ुलेखा ने इन को गुनाह की दावत दी । हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम ने अल्लाह की पनाह मांगी और कमरे से बाहर भाग गए । ज़ुलेखा ने हीले बहाने से उन को जेल भेज्वा दिया । हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम जेल की मशक़्क़तें और सऊबतें साल हा साल तक बर्दाश्त करते रहे । एक वक़्त एसा आया कि अल्लाह ताला की रहमत मुतवज्जा हुई वो सिर्फ़ बाइज़्ज़त बरी होगए बल्कि ख़ज़ानों के वाली बना दिए गए । अल्लाह ताला ने ताज उन के क़दमों में डाल दिया । चंद साल पहले जो ग़ुलाम थे आज वो आक़ा बन गए। पाकदामनी के अमल पर दुनिया में भी नक़द इनाम मिला । एसी इज़्ज़त मिली कि माँ बाप और भाई सब के सब उन के सामने सजदा रेज़ हुए । हर दौर और हर ज़माने में जो शख़्स हज़रत यूसुफ़ अलैहि स्सलाम की तरह तक़वा और पाकदामनी की ज़िंदगी गुज़ारेगा अल्लाह ताला इस के सरपर इज़्ज़तों के ताज सजायेगा ।
हदीस मुबारका में बनी इसराईल के तीन आदमीयों का वाक़िया मंक़ूल है ।
(1) सफ़र के बीच तेज बरसात होने लगी तो वे बचने के लिए एक गूफा के अंदर छिप गए । अल्लाह ताला की शान देखिए कि तूफ़ानी बरसात की वजह से एक बड़ी चट्टान लुड्कती हुई गुफा के मुंह पर आ पड़ी चट्टान इतनी बड़ी थी कि ये तीनों मिल कर ज़ोर लगाते तो भी ना हिला सकते । बाहर निकलने का रास्ता बिल्कुल नहीं था तीनों को मौत सामने खड़ी मुस्कुराती नज़र आई । ईस परेशानी, ग़म और ख़ौफ़ की हालत में तीनों ने फ़ैसला किया कि अपनी अपनी ज़िंदगी का कोई अमल अल्लाह ताला के बारगाह में पेश कर के नजात की दुआ मांगें ।
एक ने कहा मैंने माँ बाप की बहुत ख़िदमत की मैं बकरीयों का दुध पहले माँ को पीलाता बाद में सोया करता था । एक रात जब मैं दूध लेकर हाज़िर हुआ तो मेरी माँ सो चुकी थी मेने जगाना मुनासिब ना समझा और दूध हाथ में लेकर खड़ा इंतिज़ार करता रहा ओर सुबह का वक़्त होगया । ए अल्लाह मेरे इस अमल को क़बूल कर के हमें नजात अता फ़र्मा । चट्टान एक तिहाई सरक गई फीर भी अभी निकलने का रास्ता ना बना था ।
दूसरे ने कहा कि ए अल्लाह में अपनी पूरी जवानी की उम्र में अपनें चाचा की ख़ूबसूरत लड्की पर आशिक़ था। मैंने उसे फुस्लाने के लिए कई हीले बहाने किए मगर वो पाक साफ़ रही और मेरे जाल में ना फंसी । एक मर्तबा तंगदस्ती के हालात से मज्बूर होकर वो मुझ से क़र्ज़ लेने आई। मैंने उसे इस शर्त पर पैसे देने का वादा किया कि वो मेरी ख़ाहिश पूरी करे । मरती कया ना करती इस ने हामी भरली। जब मैं बूराई के लिए इस के क़रीब आया तो इस ने कहा अल्लाह से डर और इस महर को ना तोड़। इस के अलफ़ाज़ मुझ पर बिज्ली बन कर गिरे मुझ पर अल्लाह ताला का ख़ौफ़ तारी होगया । मैंने उसे पैसे भी दे दिए और बुराई भी ना की। ए अल्लाह ! अगर ये मेरा अमल आप के यहां मक्बूल है तो हमें इस मुसीबत से नजात फ़रमाईए । चट्टान दूसरी तिहाई भी सरक गई फिर भी निकलने का रास्ता ना बना।
तीसरे ने कहा कि ए अल्लाह मेरा एक मज़दूर मज़दूरी लिए बगै़र किसी वजह से नाराज़ होकर चला गया । मैंने इस के पैसों से बक्री ख़रीदी वक़्त गुज़रने के साथ वो भरपूर रेवड़ बन गया काफ़ी मुद्दत के बाद वो अपनी मज्दूरी लेने आया तो मैंने पूरा रीवड़ उसे पेश कर दिया । ए अल्लाह! अगर मेरा ये अमल आप के यहां मक्बूल है तो हमें मुसीबत से नजात अता फ़र्मा । चट्टान मज़ीद हट गई और तीनों दोस्त ग़ार से बाहर निकल आए ।
इस वाक़िया में हमारे उनवान के वीषय मे दूसरे आदमी का अमल है जिस ने इश्वर के डर की वजह से गुनाह को छोड़ा और इस का अमल अल्लाह ताला के हाँ मक्बूल हुआ । इस से सबक़ मिला कि पवीत्र इंसान अल्लाह ताला का मक्बूल बंदा होता है । अल्लाह ताला उस को दुनिया के ग़मों से भी बचाते हैं और क़दम क़दम पर उस की सहायता भी करते हैं ।
एक मर्तबा दिल्ली में क़हत पड़ा बरसात ना होने की वजह से खेतों में फ़सल भी ना होती और दरख़्तों पर फूल भी ना होते लोग खाने के लिए रोटी को तरसने लगे । हर शख़्स बारिश की दुआएं मांगता मगर आस्मान पर बादल नज़र ना आते । उलमा ए शहर ने मश्वरा किया कि शहर के सब लोग एक दिन खुले मैदान में जमा होँ । औरतों बच्चों और जानवरों को भी साथ लाएं । मैदान में नमाज़ इस्तिस्क़ा अदा करने के बाद अपने गुनाहों से तौबा करें और बारिश की दुआ करें । प्रोग्राम के मूताबीक लोग शहर से बाहर जमा होगए ।
सख़्त गर्मी और चिलचिलाती धूप ने सब के चेहरों को झुल्सा कर रख दिया नमाज़ अदा की गई मर्दों औरतों ने रोरो कर बारिश की दुआ मांगी मगर आस्मान पर दूर दूर तक बादल का निशान नज़र ना आया । मासूम बच्चे तड़प्ने लगे जान्वर भी पानी को तरसने लगे लोगों का रो रो कर बुरा हाल होगया । सुबह से अस्र तक ये अमल जारी रहा मगर उम्मीद की किरण नज़र ना आई। जिस वक़्त दुआ मांगते हुए मख़लूक़ ख़ुदा ख़ूब रो रही थी उस वक़्त एक मुसाफ़िर नौजवान इस मैदान के क़रीब से गुज़रा । इस ने ऊंट की महार पकड़ी हुई थी ख़ुद पैदल चल रहा था जब कि ऊंट पर कोई पर्दा नशीन औरत सवार थी । इस ने इतने लोगों को रोते देखा तो ऊंट को एक जगह रोका और क़रीब के लोगों से पूछा कि क्या मुआमला है । जब उसे हक़ीक़त-ए-हाल की ख़बर हुई तो वो अपने ऊंट के क़रीब गया और दुआ केलिए हाथ उठाए । अभी हाथ नीचे नहीं आए थे कि छमछम बारिश बरसने लगी।
एक आलीम ने इस नौजवान से पूछा कि आप कितने ख़ुशनसीब हैं । इस ने जवाब दिया कि दरहक़ीक़त ऊंट पर मेरी वालिदा सवार हैं । मैंने अपनी वालिदा की चादर का एक कोना पकड़ कर अल्लाह ताला से दुआ मांगी। ए परवरदिगार आलम ये मेरी नेक पाकदामन वालिदा हैं आप को उन की पाकदामनी का वास्ता देता हूँ अपने बंदों पर बारिश बरसा दीजिए । अभी मेरे हाथ नीचे नहीं आए थे कि बारिश बरसने लगी । मालूम हुआ कि पाकदामनी अल्लाह ताला के हाँ इत्ना मक़बूल अमल है कि अगर इस को अल्लाह ताला के हुज़ूर पेश करें तो परवरदिगार दूआ को रद्द नहीं फ़रमाते ।