सदका-ए-फित्र की फज़ीलत और उसके मसाइल

ईद का त्योहार इंसानी बराबरी का पैगाम देता है। सब एक-दूसरे की खुशी में शरीक हों, इसके लिए जकात, सदका-ए-फित्र का प्रावधान दिया गया।

गरीबों, मिसकीनों को इतना माल दे दिया जाए कि वे ईद की खुशियों से मेहरूम (वंचित) न रहें। हजरत मोहम्मद(स०) ने ‘सदका-ए-फित्र’ को ‘जकातुल फित्र’ कहा है। यह (दान) रमजान के रोजे पूरे होने के बाद दी जाती है। ‘जकातुल फित्र’ यह सदका रोजे के लिए बे-हयाई और बेकार बातों से पाक होने के लिए गरीबों को दिया जाता है।

रोजे की हालत में इंसान से कुछ भूल-चूक हो जाती है। जबान और निगाह से गलती हो जाती है। इन्हें माफ कराने के लिए सदका दिया जाता है। हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. बयान फरमाते हैं कि अल्लाह के रसूल (स०) ने रमजान का सदका-ए-फित्र एक साअ (1700 ग्राम के लगभग) खजूर या जौ(या दो कीलो पैतालिस ग्राम या उसके बराबर रक़म) देना हर मुसलमान पर फर्ज है।

चाहे वह आजाद हो या गुलाम, मर्द हो या औरत। जकात माल पर फर्ज है, वह माल को पाक करती है और सदका-ए-फित्र इंसान पर वाजिब है। यह इंसान को गुनाहों की गंदगी से पाक करता है।
वह शख्स जिस पर जकात फर्ज है उस पर फित्र वाजिब है। यह फकीरों, मिसकीनों (असहाय) या मोहताजों को देना बेहतर है। ईद का चांद देखते ही फित्र वाजिब हो जाता है।

ईद की नमाज पढ़ने से पहले इसे अदा कर देना चाहिए। अगर किसी वजह से ईद की नमाज के बाद दें तो भी हर्ज नहीं है। लेकिन कोशिश की जाए पहले दें। फित्र में क्या देना चाहिए तो हर वह चीज जो गिजा (खाद्य सामग्री) के तौर पर इस्तेमाल की जाती है।

गेहूं, अनाज, खजूर आदि से भी सदका-ए-फित्र अदा हो जाता है। वैसे नकद रकम (राशि) भी दी जा सकती है। उल्मा-ए-दीनने इसकी मात्रा 1700 ग्राम(या दो कीलो पैतालिस ग्राम) के लगभग बताई है। इतना अनाज या राशि अदा करने से यह सदका अदा हो जाता है।