सबकदोश चीफ़ जस्टिसों की क़िल्लत , इंसानी हुक़ूक़ कमीशन ज़वाबत में तरमीम ज़ेर-ए-ग़ौर

हाइकोर्ट के सबकदोश जज्स ( न्यायधीश) की क़िल्लत की वजह से नैशनल हियूमन राईट्स कमीशन (NHRC) अपनी रियास्ती मजालिस के लिए सदर नशीन के तक़र्रुर के लिए अपने ज़ाबतों और क़वाइद में तरमीम के बारे में ग़ौर-ओ-ख़ौज़ कर रहा है। इलावा अज़ीं कमीशन शुमाली मशरिक़ी रियास्तों के लिए इंसानी हुक़ूक़ की सिर्फ एक मजलिस के क़ियाम पर भी ग़ौर कर रहा है क्योंकि इन रियास्तों में किसी सबकदोश जज की ख़िदमात हासिल करना ज़्यादा मुश्किल है।

NHRC के सदर नशीन जस्टिस के जी बाल कृष्णन ने बताया कि शुमाल मशरिक़ी इलाक़ों की छोटी रियास्तों में कमीशन की सबकदोश जज्स ( न्यायधीश) की दस्तयाबी मुश्किल है। शुमाल मशरिक़ की सात रियास्तों में सिर्फ एक हाईकोर्ट है और ज़ाहिर है कि सबकदोश चीफ़ जस्टिस की तादाद भी कम ही होगी लिहाज़ा अब ये नागुज़ीर हो गया है कि ज़वाबत-ओ-क़वानीन पर नज़रसानी करते हुए इन में तरमीम की जाए।

मजमूई तौर पर शुमाल मशरिक़ी रियास्तों में सात रियास्तों की जरूरतों की तक़्मील के लिए सिर्फ एक SHRC है लिहाज़ा कुछ तरमीमात अशद ज़रूरी हैं। मिस्टर बालकृष्णन ने पी टी आई को इंटरव्यू देते हुए ये बात कही। तहफ़्फ़ुज़ इंसानी हुक़ूक़ एक्ट 1993 में तरमीम के लिए मौजूदा SHRC से भी मुशावर्त तलब की गई है।

उन्होंने कहा कि तरमीम की तजवीज़ भी पेश की गई है जो फ़िलहाल ज़ेर-ए-ग़ौर है। इस सिलसिले में हम SHRC से तफ्सीलात जमा कर रहे हैं ताकि तरमीम की नौईयत को क़तईयत दी जा सके। तरमीम के बाद वज़ारत-ए-दाख़िला से मंज़ूरी भी हासिल करना है। तरमीम का ख़्याल दरअसल उस वक़्त आया जब कमीशन को ये मालूम हुआ कि कुछ रियास्तों में SHRC कारकर्द नहीं है जबकि रियास्तों और मर्कज़ के ज़ेर‍ ए‍ इंतेज़ाम वाली जुमला 15 रियास्तों में इंसानी हुक़ूक़ मजलिस का वजूद ही नहीं है।

शुमाल मशरिक़ में आसाम और मनीपुर के सिवाए दीगर पाँच रियास्तों में SHRC तश्कील नहीं दी गई है जबकि मनीपुर में सदर नशीन का ओहदा मख़लवा है।