सब्र-ओ-तहम्मुल और इस्तिक़लाल ख़वातीन का जिहाद

हैदराबाद 14। जनवरी (सियासत न्यूज़ ) मौलाना मुहम्मद शाकिर अली नूरी अमीर आलमी तहरीक सुन्नी दावत इस्लामी मुंबई ने कहा कि ख़वातीन का हक़ीक़ी ज़ेवर ये है कि वो हयादारी को इख़तियार करें और अपने शौहर की फ़रमांबर्दार वा एताअत गुज़ार बन जाएं। शौहर के ग़ियाब में भी शौहर की इज़्ज़त और एहतिराम का ख़्याल रखें।जिस तरह फूल से ख़ुशबू निकल जाय तो वो बे कार होजाता है इसी तरह औरत में हया होतो वो अपनी ख़ुशबू से अपने ख़ानदान को महकाती रहेगी।प्रोफ़ैसर अशर्फ़ रफ़ी साबिक़ सदर शोबा उर्दू उस्मानिया यूनीवर्सिटी ने घरेलू झगड़े और उन का सद्द-ए-बाब के उनवान पर इस्लामी ख़वातीन से ख़िताब करते हुए कहा कि वो घर के अंदर-ओ-बाहर दोनों जगह मुकम्मल मुस्लमान बन जाएं तो खुद बख़ुद तमाम झगड़े ख़तम होजाएंगे।

औरतों का जिहाद ये है कि वो-सब्र-ओ-तहम्मुल और इस्तिक़लाल पर अमल करें। माएं अपने बच्चों की तर्बीयत करते वक़्त उन्हें हुज़ूर अकरम ई के इलावा सहाबा किराम और इस्लाफ़ की कहानियां सुनाते थे।हम अपने बच्चों की तालीम पर तवज्जा तो देते हैं लेकिन उन की तर्बीयत पर तवज्जा नहीं देते हैं उन के रहन सहन पर नज़र नहीं रखते इस का नतीजा ये बरामद होरहा है कि हमारी लड़कीयां मुर्तद होरही हैं। मावं की मूसिर तर्बीयत होतो वो मुकम्मल मुस्लमान होंगे। हम अपने घरों में बहू बनाकर लड़कीयों को लाते हैं लेकिन उन्हें अपनी बेटी की तरह नहीं समझते जबकि अपनी बेटी को दूसरों के घरों में ब्याह कर देते हैं।

हज़रत ख़ातून जन्नत सय्यदा फ़ातिमा (र) इबादात के इलावा अपने घर का काम काज भी किया करती थीं। डाक्टर रिहाना सुलताना सदर शोबा निस्वान मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी ने टी वी मोबाईल और अनटरनट के मुज़िर असरात पर अपने ख़िताब में कहा कि मोबाईल और अनटरनट मौजूदा दौर की ज़रूरत बन गया है लेकिन इस ज़रूरत का ज़्यादा इस्तिमाल करने से ख़राबियां पैदा होरही हैंकसरत कलाम से इंतिशार पैदा होरहा है। सोश्यल नट वर्क वैबसाईटस से हमारी घरेलू मालूमात दुनिया के हर आम आदमी तक पहुंच रही हैं। नौजवान दूसरों की ज़ातियात में दिलचस्पी ले रही हैं।

रात देर गए तक टी वी या इनटरनेट पर ग़ैर मुहर्रमों से चिया टंग और फ़िल्म बीनी में मसरूफ़ में हैं लेकिन उन की कोई निगरानी नहीं होने से अपनों से ज़्यादा दूसरों पर भरोसा करने से गुरेज़ नहीं करते।ख़वातीन जो घरों कीज़ीनत हैं उन्हें इश्तिहारात की ज़ीनत बनादिया गया। लड़कीयों को इबतदा-ए-से तालीम के साथ तर्बीयत भी देने की ज़रूरत है।डाक्टर मुफ़्तिया रिज़वाना ज़र्रीन प्रिंसिपल जामाৃ इल्मोमनात ने लिबास और जे़ब-ओ-ज़ीनत की इस्लामी हद उनवान पर ख़िताब में कहा कि औरत का मतलब ख़ुद पोशीदा रखने वाली चीज़ है। इस लिए पोशीदा रखने वाली चीज़ के लिए लिबास भी इसी के मानिंद होना चाहीए। लिबास सत्र पोशी केलिए और जे़ब-ओ-ज़ीनत केलिए भी होता है।

औरत का स्तर ये है कि वो अपने तमाम जिस्म को ढाँके।हम मग़रिबी तहज़ीब की नक़्क़ाली में लिबास को इख़तियार कररहे हैं जबकि औरत का लिबास इस्लामी होना चाहीए। हमारी बाअज़ लड़कीयां बुर्क़ा तो पहनती हैं लेकिन बुर्क़ा में मर्दाना लिबास इख़तियार कररही हैं उन पर अल्लाह की लानत होती है।जो जिस क़ौम की मुशाबहत करती हैं इन को इसी क़ौम में उठाया जाएगा।ख़वातीन को अपनी जे़ब-ओ-ज़ीनत भी अपने शौहर के हद तक महिदूद रखनी चाहीए।डाक्टर मुफ़्तिया नाज़िमा अज़ीज़ सदर मुफ़्तिया जामाৃ इल्मो मनात ने फ़रोग़ इस्लाम केलिए सहाबयात की क़ुर्बानी उनवान पर ख़िताब में कहा किबाअज़ सहाबयात में ऐसी खूबियां थीं कि वो सहाबा पर भी सबक़त ले गईं थीं।

दीन इस्लाम के लिए सब से पहले हज़रत समीहओ ने अपनी जान का नज़राना पेश किया था।इशाअत देन में ख़वातीन ने मर्दों के शाना बशाना काम किया। इन्फ़ाक़ फ़ी सबीलिल्लाह मैं बे दरिग़ थीं।एक माँ अगर तालीम-ए-याफ़ता होगी तो इस का सारा ख़ानदान तालीम-ए-याफ़ता होगा।मुहतरमा सुलताना नज़ीर उल-हसन डायरैक्टर प्रिंसस ऐसन गर्लज़ हाई स्कूल ने कहा कि माएं ख़ुद अपनी बच्चीयों के लिए एक बेहतरीन नमूना हैं।

माएं अपने बच्चों की परवरिश में पाँच बातों का ज़रूर ख़्याल रखें उन की जिस्मानी नशो नुमा ज़हनी या दिमाग़ी नशो नुमा समाजी नशो नुमा जज़बाती नशो नुमा दीनी और अख़लाक़ी नशो नुमा को पेशे नज़र रख कर परवरिश करें तो उन का मुस्तक़बिल संवर सकता है।माएं क़ुरआन मजीद पढ़ें और अपने बच्चों को इस की तलक़ीन करें।

मौलाना मुहम्मद रिज़वान कादरी मुंबई ने कहा कि मर्द का साथ ख़वातीन की बेपर्दगी और बेहयाई की वजह से कई घराने तबाह होचुके हैं। फ़िल्म बीनी और अनटरनट की वजह से फ़ैशन परस्ती और अख़लाक़ी गिरावट अपने इंतिहा को पहुंच चुकी है।टी वी सीरीयलस की नक़्क़ाली की वजह से बेपर्दगी और रिश्तों में कड़वाहट देखी जा रही है।