समाचारों को तोड़मरोड़ कर धार्मिक जनभावनाओं को भड़काने वाली मीडया पर आखिर कैसे लगे लगाम !

भारत में कॉरपरेट मीडिया के बढते प्रभाव का असर लोगों के आम जिंदगियों पर भी पडता है । मीडिया के द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समाचारों की हेडलाईनों को नमक मिर्च लगाकर प्रस्तुत कर किसी ख़ास धर्म को चिंन्हित करते हुये, सामप्रदयिकता का प्रचार प्रसार आम हो गया है । जो मीडिया समाज के लिये काफी लाभदायक और उपयोगी साबित हो सकती है आज उनपर जिन शक्तियों का कब्ज़ा है वे इसका ग़लत उपयोग निरंतर कर रहे हैं । आज समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को मीडिया के इस प्रभाव से स्वंय को और जनता को सुरक्षित रखने के लिये भरपूर कोशिश की जानी चाहिये ।

देश में बढती अराजकता का एक सबसे बडा कारण भारत में कॉरपरेट मीडिया के प्रभाव को कम करने के लिये जनता को सरकार के ऊपर निम्न बातों का दबाव डाला जाये :

१- टीवी पर व्यापारिक विज्ञापनों को सीमित कर, उसके लिये ठोस कानून बनाया जाये ताकि मीडिया में व्यापार की इस भरमार की प्रतिस्पर्धा को रोका जा सके !

२ – बच्चों के कार्यक्रमों और समाचार प्रसारण के बीच विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध या कठोर सीमाये लागू हों ।

३ – प्रेस कॉंसिल आफ इंडिया जैसी संस्थाओं को ईमानदारी से बग़ैर उनपर दबाव जाले अपना काम प्रभावी ढंग से करने दिया जाये तथा विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की और से इसका प्रतिनिध्त्व किया जा सके ।

४ – टीवी चैनलों फिल्मों और अख़बारों पर अश्लीलता विरोधी कानून को सख़्ती से लागू किया जाये , सेंसर बोर्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार को पूर्णत: ख़त्म किया जाये ।

५ – टीवी पर समाचार को प्रस्तुत करने वाले ऐंकर यदि किसी मुजरिम की जाति और धर्म को प्रमोट कर उसके ख़िलाफ षडयंत्र करते दिखें उनके ख़िलाफ सरकार के द्वारा फास्ट सेशन कोर्ट में मुकदमा चला दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाये ।

६ – बलात्कार, हत्या या सामप्रदियक दंगों में आरोपी की जाति और धर्म का सहारा लेकर ख़ास वर्ग और समप्रदाय को भडकाने वाले चैनलों पर त्वरित संज्ञान लेकर उनपर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया जाये ।

७ – कोर्ट में मामला जाये बग़ैर या बग़ैर निर्णय आये आरोपी मुलज़िम को मुजरिम की तरह पेश कर सस्ती टीआरपी की दौड लगाते चैनलों को कोर्ट की अवमानना मानते हुये ऐसे चैनलों और उस समाचार क प्रस्तुत करने वाले ऐंकरों के ख़िलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर कडी कार्यवाही की जाये ।

उपरोक्त बिंदुओं के अतरिक्त विभिन्न सामाजिक संगठनों की और से एक वैकल्पिक मीडिया का विकास किया जाये ( सोशल मीडिया एक बेहतर विकल्प हो सकता है ) तथा सामाजिक संगठनों का ऐसे छोटे अव्यवहारिक और टीवी चैनल के साथ साथ रेडियो स्टेशन शुरू किये जाये जो कि सीधे तौर पर स्थानीय जनता से संवाद कर सकें तथा जिनकी जडें जनता के बीच गहरी हों । इन सारे बिंदुओं पर एकजुट होकर सभी धर्म के बुद्धजीवियों को आगे आकर इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुये अपने अपने तरीके से लिखकर , बोलकर , समझाकर , इसको देशव्यापी मुद्दा बनाकर एकजुटता का परिचय देना होगा , तभी हम सब मिलकर मीडिया की मनमानी और और उसके बढते प्रभाव को रोक पाने में कामयाब हो पायेंगें !

लेखक डॉ.उमर फारूक आफरीदी

(लेखक के विचार निजी हैं)