अब जबकि लोक सभा के साबिक़ स्पीकर पी ए संगमा सदारती इंतिख़ाब ( राष्ट्रपती चुनाव) की दौड़ में शामिल रहने पर निर्भर हैं, वहीं वज़ीर-ए-आला तमिलनाडू जया ललीता ने एक अहम ब्यान देते हुए कहा कि मिस्टर संगमा के अज़ाइम को मद्द-ए-नज़र रखते हुए दीगर सयासी जमातों ( दूसरी राजनीतिक पार्टी) को भी उन की ताईद ( समर्थन) के लिए आगे आना चाहीए।
हालाँकि कई क़ाइदीन ( लीडर) उनके साथ (जया ललीता) मुसलसल रब्त ( संपर्क) में हैं जबकि कुछ क़ाइदीन ( लीडर) ऐसे भी हैं जो ये चाहते हैं कि जया ललीता साबिक़ सदर जमहूरीया ( पूर्व राष्ट्रपती) ए पी जे अब्दुल कलाम की ताईद ( मदद) करें लेकिन कलाम ख़ुद ही सदारती इंतिख़ाब की दौड़ से दस्तबरदार ( अलग/ वंचित) हो गए हैं।
अपनी बात जारी रखते हुए जया ललीता ने एक बार फिर दीगर ( अन्य) पार्टीयों से अपील की कि वो संगमा की ताईद करें लेकिन अपनी ताईद से क़बल वो इस का बाक़ायदा ऐलान करें। अख़बारी नुमाइंदों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ए आई ए डी एम के ने गुज़श्ता माह ही संगमा की ताईद का ऐलान कर दिया था और आज भी अपने इसी मौक़िफ़ ( निश्चय) पर क़ायम है।
अब्दुल कलाम जिन की ताईद ममता बनर्जी ने की थी, उन के बारे में बात करते हुए जया ललीता ने कहा कि मग़रिबी बंगाल की हम मंसब ने इस मौज़ू ( विषय) पर इन से बातचीत की थी और ख़ाहिश ज़ाहिर की थी कि मैं (जया) ए पी जे अब्दुल कलाम की ताईद करूं जिस का जवाब देते हुए मैंने कहा था कि पार्टी ने पहले ही संगमा की ताईद ( समर्थन) का ऐलान कर दिया है।
अब देखना ये है कि ममता बनर्जी इस बारे में क्या फ़ैसला करती हैं? यहां इस बात का तज़किरा दिलचस्पी से ख़ाली ना होगा कि जया ललीता और वज़ीर-ए-आला ओडीशा नवीन पटनायक वो पहले शख्स थे जिन्होंने संगमा की ताईद ( समर्थन) का ऐलान किया था। इस की एक वजह ये भी थी कि आज तक सदर जमहूरीया (राष्ट्रपती) के जलील-उल-क़दर ( सम्मानित/ महामना) ओहदा के लिए किसी भी कबायली क़ाइद (जनजातीय लीडर) को नामज़द नहीं किया गया है।
वज़ीर-ए-आला ने मुस्कुराते हुए कहा कि फ़र्ज़ कीजिए कि संगमा अगर कामयाब हो गए तो वही लोग उन के आस पास देखे जायेंगे जो आज उन की मुख़ालिफ़त ( वीरोध) कर रहे हैं। वैसे तो सियासत में सब कुछ मुम्किन है लेकिन बाअज़ वक़्त गैरमुमकिन बात भी मुम्किन नज़र आती है।