रिश्वत सतानी के ख़िलाफ़ समाजी क़ाइद अन्ना हज़ारे और उन की टीम के अरकान की मुहिम के असरात ही हैं कि कांग्रेस को अपनी सयासी साख का ग्राफ़ गिर जाने की फ़िक्र लाहक़ हो गई है। यूपी में इंतेख़ाबात के बाद पार्टी ने रिश्वत के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में कोई दिलचस्पी का इज़हार नहीं किया।
अन्नाहज़ारे ने फिर एक बार इस पार्टी को ललकारा है जबकि अगर इसने बद उनवान 14 वुज़रा के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की तो 2014 के बाद इक़्तेदा से महरूम होना पड़ेगा। रिश्वत सतानी के मसला पर मुल्क में जो सूरत-ए-हाल रौनुमा हुई है इसके हल के लिए इंसाफ़ और संजीदगी से हालात का जायज़ा लेने की ज़रूरत है। इस सिलसिला में हुकूमत और दूसरे हलीफ़ पार्टीयों के साथ मिल कर रिश्वत सतानी के इल्ज़ामात का सामना करने वाले वुज़रा के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर ग़ौर कर सकती है।
अन्ना हज़ारे जिन 14 वुज़रा को बद उनवान क़रार दिया है इन में कांग्रेस और हलीफ़ पार्टीयों के क़ाइदीन भी शामिल हैं। ये इल्ज़ामात संगीन हैं और उनको किसी के सर थोपने की कोशिश का मतलब यही है कि हुकूमत की कारकर्दगी पर अवाम की नज़रों को हटाया जाए।
अन्नाहज़ारे ने एतवार के दिन दिल्ली के जंतर मंतर पर एक रोज़ा भूक हड़ताल करके यू पी ए हुकूमत के काबीनी वुज़रा के ख़िलाफ़ ऐक्शन लेने और एफ़ आई आर दर्ज करने पर ज़ोर दिया है। इन 14 मर्कज़ी वुज़रा के नाम भी ज़ाहिर कर दिए गए हैं। अगर यू पी ए एक मज़बूत इंसेदाद रिश्वत सतानी क़ानून लाने में नाकाम हो जाए तो उसे 2014 के इंतेख़ाबात में शिकस्त का मुंह देखना पड़ेगा।
सयासी क़ाइदीन को किसी बदउनवानी पर जेल की सलाखों के पीछे डालने की मुहिम किस हद तक कामयाब होगी ये सब अवाम जानते हैं। हाल ही में 2G स्क़ाम केस के अहम मुल्ज़िमीन कुछ दिन जेलों में रह कर क़ानून के बाअज़ ख़ामीयों का सहारा लेकर जेल से रिहा हो गए। अन्ना हज़ारे और उन की टीम के अरकान के ख़िलाफ़ भी गुमराह कौन या एक मुनज़्ज़म मुहिम चलाई जा रही है कि ये लोग ख़ुद भी दूध के धुले नहीं हैं।
अरविंद केजरीवाल ने अरकान-ए-पार्लीमेंट के ख़िलाफ़ जो ब्यानात दिए हैं इन ब्यानात को अरकान-ए-पार्लीमेंट की तौहीन और ज़िल्लत से ताबीर किया गया। अब अरविंद केजरीवाल भी अरकान-ए-पार्लीमेंट को बदनाम करने की पादाश में तहरीक मुराआत नोटिस का सामना कर रहे हैं। रिश्वत के ख़ातमा का जहां तक सवाल है ये उस वक़्त मुम्किन है जब सियासतदां और आला ओहदेदारों के साथ अवाम की बड़ी तादाद इस के ख़िलाफ़ मुनज़्ज़म इक़दाम करें।
ज़रूरतमंद अफ़राद या ग़रज़मंद मुतमव्विल लोग रिश्वत दे कर अपने ख़राब इरादों या गै़रक़ानूनी हरकतों को जायज़ बनाने में कामयाब होते हैं। इस लिए मुआशरा में रिश्वत का चलन आम हो गया है। इसके साथ ओहदेदार और लीडरान भी अवाम की ज़रूरीयात को मद्द-ए-नज़र रख कर उन को रिश्वत देने या उन से रिश्वत हासिल करने का ऐसा मौक़ा फ़राहम करते हैं कि बहरहाल रिश्वत अदा की जाती है।
रिश्वत सतानी के मसला पर आइन्दा इंतेख़ाबात में यू पी ए का मुस्तक़बिल क्या होगा अंदाज़े मुख़्तलिफ़ हैं। अन्ना हज़ारे अगर एक बा ख़बर आदमी हैं जिनके पास अवाम की ताक़त और सच्चाई का हथियार है तो वो सयासी पार्टीयों को उनके घर की राह दिखा सकते हैं, लेकिन अन्ना हज़ारे की मक़बूलियत भी ऐसा कोई बारगर तूफ़ान नहीं उठा सकी जिसकी रो में बद उनवान सियासतदां बह जाएं।
बद उनवान सियासतदानों की चर्बज़बानी और उनके कारिंदों की इंशा-ए-परदाज़ी ने ही अवाम के एक बड़े तबक़ा को कंफ्यूज़ किया है। इसलिए रिश्वत सतानी का मसला जहां अवाम को मायूस किया है वहीं होशियार सियासतदानों की चालाकियों का शिकार भी हुआ है।
बद उनवान क़ाइदीन सयासी हलक़ों में अपने सयासी हरकयात के ज़रीया ऐसा जादू चला दिए हैं कि बड़ी से बड़ी पार्टी का हाईकमान ज़बान बंद कर लेता है। इक़्तेदार में शामिल सियासतदानों ने दौलत कमाने और कारोबार बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी की नेक नामियों को भी इस्तेमाल किया है फिर उस दौलत को बैरून-ए-मुल्क भेज कर बैंकों में जमा कर दिया है।
काले धन का मसला रिश्वत सतानी के वाक़्यात के बाद ही पैदा होता है। इसलिए मुल्क में सब से पहले सियासतदानों की बदउनवानीयों को रोका जाए तो काले धन का मसला पैदा नहीं होगा। अवाम के पास रहने के लिए ज़रूरी है कि हर लीडर, ओहदेदार और समाजी ज़िंदगी से वाबस्ता फ़र्द अपनी दियानतदारी का मुज़ाहरा करे, लेकिन अब मुम्किन दिखाई नहीं देता। 30 जनवरी 2011से मुहिम चलाने वाले अन्ना हज़ारे को अब तक कामयाबी नहीं मिल सकी बल्कि बाअज़ सियासतदानों ने उन्हें ही बदनाम करने की कोशिश की है तो ये किस क़दर हैरत की बात है कि ये सियासतदां अपने बचाव के लिए एक से एक नुक्ता निकालने में कामयाब हो रहे हैं।
रिश्वतखोरी को रोकने के लिए हर पार्टी की आला क़ियादत ही सख़्त गीर मौक़िफ़ इख्तेयार करे तो ये मसला किस हद तक हल हो सकता है।