हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ी.) ने ज़माना-ए-जाहिलियत में तीन शादियां कीं, उन की पहली शादी सय्यदना उस्मान बिन मजउन (रज़ी.) की हम्शीरा सय्यदा ज़ैनब बिंत मजउन से हुई, जिन्हों ने इस्लाम क़बूल किया और हिज्रत की सआदत हासिल की। इन ही से हज़रत सय्यदा हफ़सा (रज़ी.) पैदा हुईं।
हज़रत सय्यदा हफ़सा (रज़ी.) को अल्लाह के रसूल स.व. की ज़ौजा-ए-मुहतरमा बनने का एज़ाज़ हासिल हुआ। इस रिश्ता से सय्यदा ज़ैनब बिन मजउन (रज़ी.), हुज़ूर अकरम स.व. की ख़ुशदामन थीं। हज़रत सय्यदा हफ्सा के इलावा उन से हज़रात अबद उल्लाह, अबदुर्रहमान और अकबर (रज़ी.) पैदा हुए।
हज़रत अबद उल्लाह (रज़ी.) ने तमाम औलाद से ज़्यादा शौहरत पाई। सय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ी.) ने कूरैबा बिंत अबी उमैया से भी शादी की, ये उम उलमोमिनीन हज़रत सय्यदा उम ए सल्मा (रज़ी.) की बहन थीं।
आप ने तीसरी शादी मुलैका बिंत अमर बिन जरवल अलखूज़ाई से की, जिस से उबैद अल्लाह पैदा हुए। कुरैबा बिंत अबी उमैया और मुलैका बिंत अमर ने इस्लाम क़बूल नहीं किया। सुलह हुदैबिया के बाद ये हुक्म नाज़िल हुआ कि काफ़िर औरतों को अपनी ज़ौजीयत में ना रखों। हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ी.) ने इन दोनों ग़ैर मुस्लिम बीवीयों को तलाक़ दे दी।
हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ी.) ने उम ए हकीम बिंत हारिस मख्जूमि से भी शादी की। ये पहले इक्रिमा बिन अबुजहल की बीवी थीं, फ़तह मक्का के मौक़ा पर इस्लाम क़बूल किया। इन के ख़ाविंद इक्रिमा बिन अबुजहल मुसल्मानों के डर से यमन की तरफ़ फ़रार हो गए। उम ए हकीम ने रसूल अल्लाह स.व. से इक्रिमा को अमान देने की दरख़ास्त की, जिसे रसूल अल्लाह स.व. ने कमाल शफ़क़त और रहमत का मुज़ाहरा करते हुए क़बूल करली। उम हकीम, इक्रिमा बिन अबुजहल को वापिस लाने के लिए यमन की तरफ़ रवाना हुईं। हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ कि इक्रिमा उन्हें वापिस आते हुए मिले। उम हकीम पूछने लगीं क्या माजरा है, तुम वापिस आरहे हो? इक्रिमा ने बताया कि जब हमारी कश्ती भंवर में फंस गई थी तो कश्ती वाले कहने लगे ख़ालिस अल्लाह को पुकारो, यहां तुम्हारे माबूद काम नहीं आसकते।