सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० के पास अगर कई रोज़ तक इस्लामी लश्कर की ख़बर ना आती तो क़नूत नाज़िला पढ़ते थे और मुजाहिदीन की कामयाबी के लिए अल्लाह तआला के सामने आह-ओ-ज़ारी करते हुए दुआएं करते थे। जब रोमीयों से मार्का हुआ तो इस मौक़ा पर भी आप ने क़नूत नाज़िला का एहतिमाम किया।
आप ख़ुद भी नमाज़ के बड़े पाबंद थे और दूसरों को भी इसकी ख़ुसूसी ताकीद फ़रमाया करते। नमाज़ के सुन्नत-ओ-फ़राइज़ का ख़ुसूसी एहतिमाम करते। लोगों को सुन्नत नबवी स०अ०व० के मुताबिक़ नमाज़ अदा करने की तलक़ीन फ़रमाते और बिद्दत से सख़्ती के साथ रोकते थे।
एक दफ़ा नमाज़ मग़रिब में कुछ ताख़ीर हो गई और मशग़ूलियत के सबब दो सितारे तलूअ हो गए तो आप ने अल्लाह तआला को राज़ी करने के लिए दो ग़ुलाम आज़ाद किए। नमाज़ अस्र के बाद नफ़िल नमाज़ पढ़ने से मना फ़रमाते थे।
इसी तरह अगर कोई शख़्स नमाज़ जुमा की अदायगी के लिए ताख़ीर से पहुंचता तो आप उसकी गोशमाली ( कान उमेठना) फ़रमाते। सालिम बिन अब्दुल्लाह अपने वालिद हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी० से बयान करते हैं कि एक दफ़ा अमीरूल् मोमिनीन हज़रत उमर बिन ख़िताब रज़ी० ख़ुतबा दे रहे थे। दौरान ख़ुतबा एक मुहाजिर सहाबी मस्जिद में दाख़िल हुए। अमीरुल मोमिनीन ने उन से उसी वक़्त पूछा ये कोई आने का वक़्त है?।
उन्हों ने अर्ज़ किया में एक काम में इंतिहाई मशग़ूल था, अज़ान हो गई तो में घर भी नहीं जा सका, सिर्फ़ व़ज़ू -किया और मस्जिद में आ गया। इस पर सैय्यदना फ़ारूक़ आज़म रज़ी० ने पूछा क्या आप ने सिर्फ़ व़ज़ू किया है? हालाँकि आप को इल्म है कि रसूलुल्लाह जुमा के दिन ग़ुसल का हुक्म देते थे। (सही अल बुख़ारी)
सय्यदना फ़ारूक़ आज़म रज़ी० इंतिहाई ख़ुशू-ओ-ख़ुज़ू से नमाज़ अदा करते थे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी० फ़रमाते हैं कि मैंने हज़रत फ़ारूक़ आज़म रज़ी० के पीछे नमाज़ अदा की। उनके रोने की आवाज़ आ रही थी, जो तीसरी सफ़ में भी सुनी जा सकती थी।