गर्वनमैंट मैटरनिटी हॉस्पिटल पेटला बुरज में डाक्टरों और दीगर अमला की कमी के नाक़िस इंतिज़ामात और तबाहकुन इनफ़रास्ट्रक्चर के वजह से हामिला ख़वातीन और उन के साथ आने वाली रिश्तेदार ख़वातीन को ना सिर्फ़ मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है बल्कि आजकल वहां कुत्तों और बिल्लियों की कसरत के वजह से इस सरकारी ज़चगी ख़ाना से रुजू होने से पहले ख़वातीन को कई बार सोचना पड़ रहा है
राक़िमुल-हरूफ़ ने गर्वनमैंट मैटरनिटी हॉस्पिटल पेटला बुरज का तफ़सीली जायज़ा लिया और ख़ातून मरीज़ों और उन के रिश्तेदारों से बात की । कुछ ख़वातीन ने बताया कि हमल के इबतिदाई चंद माह के दौरान तशख़ीस करवाने के लिये जब वो हॉस्पिटल से रुजू होती हैं तो उन्हें लंबी क़तारों में 5 ता 6 घंटे ठहरे रहना पड़ता है और तब कहीं जाकर 500 ता 600 ख़वातीन में से 100 ख़वातीन को आउट पेशंट पास हासिल करने में कामयाबी मिलती है
जब कि जो ख़वातीन पास हासिल करने से क़ासिर रहती हैं वो दूसरे दिन अपनी क़िस्मत आज़माती हैं । डाक्टरों की क़िल्लत का हाल ये है कि सिर्फ़ तीन चार डॉक्टर्स ही आउट पेशंट्स का मुआइना करते हैं जिस के नतीजा में इन ख़वातीन को सख़्त मुश्किलात का सामना करना पड़ता है जो दीगर अज़ला या मज़ाफ़ाती इलाक़ों से आती हैं।
हम ने हॉस्पिटल के बाहर एसी ख़वातीन को भी देखा जो खुले आसमान तले पड़ी हुई हैं उन लोगों ने बताया कि डाक्टरों को मरीज़ों से निमटने की फ़ुर्सत ही नहीं है । जिस के वजह से उन ख़वातीन को हॉस्पिटल के बाहर सैक़ल एसटानड और दीगर मुक़ामात पर रुकने के लिये कहा गया है और उन्हें तब ही वार्ड में मुंतक़िल किया जाता है
जब वो दर्द-ए-ज़ह से चीखने चिल्लाने लगती हैं । ज़राए का कहना है कि माज़ी में सालाना तक़रीबा 6 हज़ार ज़चगीयां की जाती थीं लेकिन नया पुल से ज़चगी ख़ाना की मुंतक़ली के बाद सालाना ज़ाइद अज़ 20 हज़ार ज़चगीयां की जाती हैं । आप को बतादें कि गर्वनमैंट मैटरनिटी हॉस्पिटल नया पुल , 10 एकड़ अराज़ी पर मुहीत था ।
460 बिस्तरों पर मुश्तमिल होने के बावजूद वहां का सरसब्ज़-ओ-शादाब माहौल मरीज़ों के लिये मुआविन रहा करता था । ताहम 100 साला उस क़दीम ज़चगी ख़ाना को जब से पेटला बुरज मुंतक़िल किया गया । मरीज़ों की मुश्किलात में इज़ाफ़ा होगया अब तो नौमौलूदों को कुत्ते बिल्लियों से बचा कर रखना भी एक मसअला बन गया है ।।