केंद्र और राज्यों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जल्द चुनाव वाले राज्य भी शामिल
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रियों, चीफ़ मिनिस़्टरों, गवर्नरों और राज्य मंत्रियों की तस्वीरें अब सरकारी विज्ञापन में शामिल किये जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने पिछले आदेश में संशोधन करते हुए प्रकाशनों में इन हस्तियों की तस्वीरों की इजाज़त दे दी है। यह फ़ैसला केंद्र और राज्यों सहित पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जहां जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, शामिल हैं क्योंकि इन राज्यों ने आदेश की समीक्षा की सुप्रीम कोर्ट से सिफारिश की।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के सिवाय संबंधित विभागों के केंद्रीय मंत्रियों, चीफ़ मिनिस़्टरों, संबंधित विभागों के राज्य मंत्रियों की तस्वीरें विज्ञापन में शामिल की जा सकें जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च को अपने फैसले पर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, चीफ़ मिनिस़्टरों और अन्य राज्य मंत्रियों के अनुरोध के आधार पर अपने पिछले आदेश में संशोधन करते हुए सरकारी विज्ञापनों में इन सभी की तस्वीरें जोड़ने की इजाज़त दे दी।
पहले सभी नेताओं की तस्वीरों के विज्ञापन में शामिल मना करदी गई थी। सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चीफ मजिस्ट्रेट ऑफ इंडिया की तस्वीरें प्रकाशित करने की इजाज़त दी गई थी। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पहले केंद्र की ओर से पैरवी करते हुए फैसले की समीक्षा की भरपूर ताईद की थी और विभिन्न कारणों सहित प्रधानमंत्री की छवि सरकारी विज्ञापनों में इजाज़त के बारे में अपने तर्क पेश करते हुए कहा था कि यही सही प्रधानमंत्री के कैबिनेट साथियों और अन्य हस्तियों को प्राप्त होना चाहिए।
अटार्नी जनरल ने यह भी कहा था कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को भी इस का बराबर अधिकार है कि उनकी तस्वीरें सरकारी विज्ञापनों में शामिल की जाएं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के 13 मई 2015 के फैसले पर पुनर्विचार की केंद्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आवेदन दिया गया था|
केंद्र ने संशोधन की इच्छा करते हुए पहले कहा था कि धारा 19 स्वतंत्रता भाषण और अभिव्यक्ति भारतीय संविधान के तहत राज्यों और नागरिकों को अधिकार देता है कि सूचना देने और प्राप्त करे। इसमें अदालतों की ओर से कटौती नहीं की जा सकती और न उन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। अटार्नी जनरल ने कहा कि अगर केवल प्रधानमंत्री की छवि सरकारी विज्ञापनों में इजाज़त दी जाए तो यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति पूजा को प्रोत्साहित किया जो लोकतंत्र में अनैतिक यही अदालत घोषित कर चुकी है।