सरकारी ज़मीन हमारी है

शहर गुलबर्गा में आंदोलन की तरफ‌ से मुनाक़िदा जलसे में मशहूर‍‍ ‍‍व‌-मारूफ़ समाजी कारकुन मेधा पाटकर ने ये नारा दिया है कि जो ज़मीन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है।ये जलसा जगत सर्किल पर मुनाक़िद किया गया था।

उन्होंने कहा चाहे वो रियासती हुकूमतें हों या क़ौमी हुकूमत हो, उनको बनाने में झोंपड़ियों में रहने वालों की बड़ी एहमीयत रही है। मगर उन्हें हमेशा से बुरी तरह नज़रअंदाज किया जाता रहा है उन्हें वो बुनियादी सहूलतें मुयस्सर नहीं हैं जो आम आदमी को हैं।

कच्ची बस्तीयों के लोगों को हर चीज़ की क़िल्लत का सामना है । पानी , हस्पताल, बेत उल-ख़ला , स्कूल ,बिजली , सड़कें वगैरह सल्म इलाक़ों में मेहनत कश ज़िंदगी गुज़ारते है और मुल्क की तरक़्क़ी में मेहनत कश हलके का अहम रोल रहा है।

मगर हमारे मुल्क में इस तबके को बुनियादी सहूलतों से हमेशा महरूम रखा गया है। जब तक इन इलाक़ों में बसने वाले मुस्लमान दलित और पसमांदा तबक़ात मुत्तहदा तौर पर जद्द-ओ-जहद नहीं करेंगे तब तक हमारी तमन्नाएं पूरी नहीं होंगी।

अन्ना हज़ारे से में ने हमेशा यही कहा है कि लोक पाल से भी अहम मसाइल मौजूद हैं जिस पर हमें काम करना है।इस मुल्क में बसने वाली इतनी बड़ी आबादी के साथ अगर सौतेला सुलूक किया जाता रहा तो हम ख़ामोश नहीं बैठ सकते। हम हमारी मांगें पूरी होने तक जद्द-ओ-जहद करते रहेंगे।

आप देखेंगे हमारी जद्द-ओ-जहद पर रियासती हुकूमतें घुटने टेकने पर मजबूर हो जाएंगी। हमारा मुतालिबा ये है कि रियासती हुकूमतें सल्म बासिंदों के लिए एक अलाहदा वज़ारत तशकील दे । इस जलसे के मेहमान ख़ुसूसी रियासती सदर पापूलर फ्रंट औफ़ इंडिया जनाब इलियास अहमद तुंबे ने कहा कि हिंदूस्तान में 60 फ़ीसद से भी ज़्यादा आबादी एसी है जिस की रोज़ाना आमदनी 40 रुपये से भी कम है।

उनकी पूरी ज़िंदगी बुनियादी हुक़ूक़ को हासिल करने की जद्द-ओ-जहद में ही चली जाती है। मगर उन्हें बुनियादी हुक़ूक़ नहीं मिलते । सियासतदां इलेक्शन के दौरान उनके इलाक़ों का दौरा करना नहीं भूलते और अपनी ज़रूरत की ख़ातिर उनसे वोट लिए जाते हैं मगर उनकी ज़रूरतें पूरी नहीं की जातीं।