सरदार अली ख़ान का इंतेक़ाल नाक़ाबिल तलाफ़ी नुक़्सान

मर्कज़ी अंजुमन महदवीह की तरफ से बैरिस्टर मुहम्मद सरदार अली ख़ान के इंतेक़ाल पर जलसा-ए-ताज़ियत मुनाक़िद किया गया। क़ारी मुहम्मद हारून अकबर की क़रा॔त कलाम ए पाक से आग़ाज़ हुआ।

मुहम्मद एहतिशाम उल-हसन ने कहा कि वो अपने वालिद मुहम्मद ज़हूर उल-हसन के साथ मरहूम से मुलाक़ात किया करते थे, मरहूम एक शीरीन गुफ़तार(बात कर्न‌) और क़ौम से मुहबत करते थे।

उन्हों ने कहा कि अल्लाह पाक से दुआ हैकि ज्वार रहमत में जगह अता फ़रमाए । मुहम्मद अब्दुल रज़्ज़ाक़ ने कहा कि वो एक काबिल-ए-क़दर मुक़र्रर थे, उन्हों ने कहा कि उस्मानिया यूनीवर्सिटी जब कोई फंक्शन होता तो मरहूम को बुलया जाता था आज भी वहां के टीचर्स उन्हें याद करते हैं। वो एक अच्छे मुक़र्रर थे ।

उन्हें हम ही नहीं बल्के ग़ैर भी क़दर की निगाह से देखते थे। मुहम्मद अफ़ज़ाल अहमद ख़ान ने कहा कि बाज़ क़ौमों की पहचान इस क़ौम के जहां दीदा अफ़राद से होती है मरहूम बहुत मुख़लिस थे वो एक साहिब स्रोत, साहिब इलम साहिब इज़्ज़त घराने में पैदा हुए, उन की दीनी तालीम-ओ-तर्बीयत क़ौम के उल्मा के पास हुई थी और दुनियावी तालीम में भी उन की मिसाल नहीं थी।

उन के पास सब कुछ होते हुए भी इन में कभी किसी किस्म के ओहदा या रुतबा की ख़ाहिश नहीं थी, वो क़ौम को सही राह दिखाने वाले क़ाबिल मुदब्बिर थे, उन के इंतेक़ाल से क़ौम एक काबिल शख़्सियत से महरूम होगई।

मक़सूद अली ख़ान सह्र ने कहा कि मरहूम में नौजवानी से ही क़ाइदाना सलाहीयत मौजूद थी क्योंकि वो जिस वक़्त आलीया स्कूल में ज़ेर-ए-तालीम, वहां पर लड़कों की एसोसी एष्ण के सदर बने इस के बाद निज़ाम कॉलिज में भी उन्हें नायब सदर बनाया गया और जब आला तालीम के लिए जब लंदन गए वहां उन्हों ने पहली मर्तबा एक वर्ल्ड फ़ोर्म का क़ियाम अमल में लाया।

जब लंदन से वापिस तशरीफ़ लाए वो अगर चाहते तो हुकूमत में कई ओहदे हासिल करसकते थे। उन्हों ने पेशा तदरीस का इंतिख़ाब किया और माहिर-ए-क़ानून की हैसियत से हिंदूस्तान में मशहूर हुए और अक़ल्लीयती कारपोरेशन के चेयरमैन के अलावा अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के दूसरे ओहदों पर भी फ़ाइज़ रहे।

सय्यद दाउद रफ़ीक़ ने मंजूम नज़राना अक़ीदत पेश किया। आदिल मुहम्मद ख़ान महदवी ने कहा कि एक मर्तबा क़ैद-ए-आज़म के जलसे में वो मौजूद थे, उन्हों ने मुझ से मुख़ातब होते हुए फ़रमाया कि फराह हाई स्कूल अपना अहे इस में बच्चों को मुफ़्त दाख़िला दे कर उन्हें तालीम के ज़ेवर से आरास्ता करने की कोशिश करें ताके वो क़ौम का नाम रोशन करसकें।

अलहमदु लिल्लाह उस वक़्त से बहुत कम फ़ीस पर बच्चों को दाख़िला दिया जा रहा है और इस वक़्त स्कूल में तलबा की तादाद 898 होचुकी है और दसवीं क्लास का नतीजा भी 92% रहा है ।

उन्हों ने कहा कि जिस तरह सूरज अपनी पूरी आब-ओ-ताब के साथ जलवा अफ़रोज़ होता है उस वक़्त चाहे इंसान घर की खिड़कियां दरवाज़े बंद करले तो भी उस की रोशनी को रोक नहीं सकता। इसी तरह सरदार अली ख़ां की शख़्सियत , इन का किरदार और उन के अख़लाक़ और आलिम इस्लाम के लिए उन की ख़िदमात को भुलाया नहीं जा सकता।

आख़िर में सय्यद मुहम्मद जीलानी मोतमिद उमूमी के शुक्रिया पर जलसा का इख़तताम अमल में आया