सरदार महल का तारीख़ी हौज़ उगालदान में तबदील!

हैदराबाद, 19 अक्तूबर: नुमाइंदा ख़ुसूसी, बलदिया के दफ़्तर का काम ही सफ़ाई है लेकिन इसका क्या जाय कि इस दफ़्तर में भी लापरवाही अपनी हद को पहुंच चुकी है । अब किसी से किया उम्मीद की जा सकती है।

निज़ाम शुशम मीर महबूब अली ख़ां मरहूम अपनी बेगम सरदार बेगम के लिए ये दो मंज़िला इमारत 111 साल क़बल तामीर की थी जिस की तामीर इंग्लिश आर्किटेक्चर ने की थी । इस इमारत को 23 मार्च 1998 में हेरिटेज आर्किटेक्चर के सर्टिफिकेट से नवाज़ा गया था ।

तब ये तख़्ती बड़ी शान से महिकमा बलदिया ने सरदार महल की इस ख़ूबसूरत इमारत पर लगाई थी , ख़ुशी-ओ-मुसर्रत का भी इज़हार किया गया था । लेकिन असल ज़िम्मेदारी से ग़फ़लत की गई निहायत कोताही से काम किया गया । हर रोज़ सुबह बलदिया के हजारो मज़दूर , मुलाज़मीन शहर की सफ़ाई , लोगों की सेहत के लिए काम करते हैं उन की ज़िम्मेदारी यही है इस को पूरा करने के लिए रोज़ाना सरदार महल से निकल पड़ते हैं ।

लेकिन उन्हें अपने दफ़्तर की हालत दिखाई नहीं दी । सुबह से शाम तक बलदिया के आला आफिसर्स भी इस दफ़्तर में रहते हैं । उन की भी इस लाजवाब तारीख़ी इमारत के अंदर वाक़्य हौज़ पर नज़र नहीं पड़ती । ना तो ये हौज़ इस्तिमाल के काबिल रहा और ना किसी ने इस पर तवज्जा दी कि इस के अतराफ़ किस क़दर गंदगी है ।

इस की हालत-ए-ज़ार देख कर दुख होता है कि ये उगालदान में तबदील हो गया है । इस अमल को बहस नहीं तो और क्या कहा जा सकता है । वैसे हैदराबाद का हर शहरी बलदिया की मिसाल देता है जब भी किसी महिकमा की नाक़िस कारकर्दगी या ना अहली की बात कहनी होती है तो यही कहा जाता है कि ये तो बलदिया की तरह है या बलदिया की तरह का हो गया है ।

किसी काम के नाक़िस पन पर ये मिसाल भी आम तौर पर दी जाती है कि बलदिया खाया पिया चलदया ग़रज़ बलदिया की लापरवाही के बारे में कई बातें कही सुनी जातें हैं । शहर के कोने कोने में किसी गली में तक अगर कोई मकान तामीर करता है तो और बलदिया के अमला को पता चलता है और फ़ौरन हाज़िर हो कर परमीशन इजाज़तनामा से मुताल्लिक़ कई सवालात करते हैं और ये कहेंगे कि दफ़्तर आव साहिब से भी बात करो या फिर कहा जाता है कि हम कल आयेंगे । कल आने का मतलब हर शहरी जानता है ।

इस के क्या मानी होते हैं । मुहल्ला की जासूसी करने वाले का भी ख़्याल रखा जाता है । सवाल ये है कि एक ग़रीब की गली तक पहुंचने वाला अपने ही घर या अपने दफ़्तर का इतना ख़्याल क्यों नहीं रखते । जहां तक सरदार महल इमारत का ताल्लुक़ है कई तारीख़ी किताबों में बड़ी तफ़सील के साथ इस का ज़िक्र मौजूद है ।

सारी तफ़सील दर्ज है । बलदिया का जो अमला किसी घर की तामीर के वक़्त आकर मुदाख़िलत करता है इस की मिसाल ये है कि एक उंगली दूसरों की तरफ़ की जाती है जो चार अपनी जानिब भी होती हैं । ख़ुद के दफ़्तर का जायज़ा लिए बगै़र शहर की सफ़ाई के लिए यूं निकल पड़ना अजीब मालूम होता है जिन्हों ने उन्हें हेरिटेज बिल्डिंग का ख़िताब दिया है ।

उन्हें चाहीए फिर एक मर्तबा अचानक सरदार महल का जायज़ा लें । यक़ीन मानिए 1998 में हेरिटेज बिल्डिंग का दर्जा देने का जो फ़ैसला किया गया था इस पर उन लोगों को अफ़सोस होगा । चारमीनार के दामन में ये तारीख़ी इमारत जो सरदार बेगम के नाम से मौसूम है इस की देख भाल में लापरवाही हम सब के लिए एक सवालिया निशान है ।

क़ारईन! सरदार महल को GHMC ने हासिल किया है और हुकूमत इस इमारत को म्यूज़ीयम बनाने का इरादा रखती है और एक दिलचस्प बात इस सरदार महल के बारे में पढ़ने में आई । सरदार बेगम को ये महल बिलकुल पसंद नहीं आया था इसी वजह से वो इस में नहीं रहती थी ।