सरबजीत ने कहा था-आना मेरे मुल्क

मधुबनी 6 मई : ‘चार साल पहले लाहौर के कोट लखपत जेल में सरबजीत से पहली मुलाकात हुई थी। पहले तो वह चौंका। फिर बोला- तुम यहां कैसे आ गए। पूरे चार साल उसके साथ जेल के वार्ड नंबर-6 में रहा। रिहाई हुई और जेल से बाहर निकलने लगा तो उसने कहा, फिर आना मेरे मुल्क में। मेरी भी रिहाई होने वाली है। वहां आकर तुम्हें अच्छी नौकरी दिलाऊंगा।’

ये लफ्ज़ हैं मधुबनी के खुटौना ब्लाक के चतुर्भुज पिपराही गांव रिहायसी अली हसन खान के। वह लाहौर के कोट लखपत जेल से पिछले साल 15 जून को रिहा हुआ था। उसकी कहानी भी सरबजीत से मिलती-जुलती है। वह भी अमृतसर से भटकते हुए पाकिस्तानी हदूद में चला गया था। मजदूरी करने अमृतसर गया था। एक दिन घर आने के लिए रेलवे लाइन पकड़ी तो पाकिस्तान जा पहुंचा।

सरबजीत और हसन के मामलात में फर्क बस यही है कि सरबजीत की लाश पाकिस्तान से आया जबकि हसन अली रिहा होकर। जेल की यादों को लफ़्ज़ों का जामा पहनाते हुए हसन ने बताया कि सरबजीत काफी पुर्सकुं रहता था। उसकी जेल में किसी से अदावत नहीं थी।

हसन को भी मिली थी अजायत : साल 2009 में भटकते हुए पाकिस्तान पहुंचे अली हसन को जेल भेजे जाने से पहले कम अजायत नहीं सहनी पड़ी। वह कहता है कि वहां कोई यकीन ही नहीं कर रहा था कि वह अनपढ़ मजदूर है, जो भटक कर आ गया है। सब उसे हिदुस्तानी जासूस समझ रहे थे। पाकिस्तानी पुलिस की गिरफ्त में चार दिनों तक उसकी बेरहमी से पिटाई और पूछताछ होती रही थी। पिटाई का दर्द अब भी उसे सालता है।

घर आकर भी नहीं मिला चैन : अली हसन को घर में भी चैन नहीं मिला। साल 2000 में हिलवा गांव के रामलखन महतो के साथ एक मामूली तनाज़ा में हुई मारपीट में कोर्ट की तरफ से जारी वारंट की बुन्याद पर उसे गिरफ्तार कर झंझारपुर जेलखाना भेज दिया गया। जहां पांच महीने रहने के बाद अप्रैल में रिहा हुआ। उसके भाई अमजद अली और शफ़िउर्ररहमान बताते हैं कि मारपीट का इलज़ाम था। पाकिस्तान की जेल में बंद होने की वज़ह अली हसन तारीखों पर अदालत में हाजिर नहीं हो सका था। कोर्ट से जारी वारंट की बुन्याद पर पाकिस्तान से यहां लौटने के बाद उसे पुलिस गिरफ्तार कर ले गई। दोनों फरीकों के दरमियान फिर से सुलहनामा दाखिल करने के बाद अदालत के हुक्म से हसन जेल से रिहा हुआ।