हिंदूस्तान में जो फ़िलहाल अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की सलामती कौंसल की सदारत पर फ़ाइज़ हैं इस 15 रुकनी इदारा की हैअत तरकीबी को हक़ीक़ी मानों में सही बनाने के लिए इस्लाहात और नई सूरत गिरी करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है और कहा कि इन इक़दामात की सूरत में ही कोई ख़ास तबदीली आसकती है
जबकि महज़ अलामती इस्लाहात-ओ-तब्दीलियों से इस इदारा की साख और कारकर्दगी में कोई इज़ाफ़ा नहीं होगा। सलामती कौंसल पर हिंदूस्तान की सदारती मीआद के इख़तताम से चंद दिन क़बल इस ने यहां गुज़श्ता रोज़ एक खुले मुबाहिसा का एहतिमाम किया
जिस का मौज़ू अक़्वाम मुत्तहदा की सलामती कौंसल की कारकर्दगी का तरीका कार था । सलामती कौंसल के क़ियाम के 65 साल बाद भी उस की कारकर्दगी शफ़्फ़ाफ़ नहीं है ।
ये कौंसल अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की वसीअ तर रुकनीयत के मुताबिक़ अपनी सलाहियतों को बरुए कार लाने के मौक़िफ़ में नहीं है चुनांचे बेन उल-अक़वामी बिरादरी की ये ख़ाहिश है कि सलामती कौंसल में तौसीअ की जाये ।