अब जबकि टीम अन्ना और क़ानून साज़ों में टकराव की कैफ़ीयत पैदा हो गई है, वहीं अन्ना हज़ारे ने सियासतदानों को निशाना बनाते हुए उन से सवाल किया कि वो कौन होते हैं इनसे सवाल करने वाले? गै़रज़रूरी नख़रे दिखाना हिंदूस्तानी दस्तूर के वक़ार को मजरूह करने के मुतरादिफ़ है।
अपने ताज़ा तरीन ब्लॉग जिसका उनवान उन्होंने इस तरह तहरीर किया है सियासतदानों के सवाल और उन के लिए मेरे जवाबात। अन्ना हज़ारे ने कहा कि वो इस बात से मुत्तफ़िक़ हैं कि सिर्फ ऐवान में ही क़ानूनसाज़ी की जा सकती है। इस में शक-ओ-शुबहात की कोई गुंजाइश नहीं है लेकिन उन्होंने ये याद देहानी भी करवाई कि लोक पाल बिल को पार्लीमेंट में एक दो बार नहीं बल्कि 8 बार पेश किया गया लेकिन उसे मंज़ूर क्यों नहीं किया गया?
बिल की राह में हाइल रुकावटों को दूर क्यों नहीं किया गया? इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? अवाम ही इस मुल्क के हक़ीक़ी मालिक हैं और उन्होंने अपने खादिमों को पार्लीमेंट में भेजा है और जब नौकरों ने क़ानूनसाज़ी में कोताही दिखाई तो असल मालिक (अवाम) को ये हक़ हासिल है कि वो इस बारे में इस्तिफ़सार करे कि लोक पाल बिल आख़िर मंज़ूर क्यों नहीं किया गया?
अपनी बात दुहराते हुए अन्ना हज़ारे ने कहा कि क़ानूनसाज़ और ब्यूरोक्रेटस अवाम के ख़ादिम हैं लेकिन यही ब्यूरोक्रेट्स जब अवाम को आँखें दिखाते हुए ये कहते हैं कि वो (अवाम) कौन होते हैं इनसे सवाल पूछने वाले? इस नौईयत के सवाल पूछना हिंदूस्तानी दस्तूर की तौहीन है। याद रहे कि अन्ना हज़ारे की एतवार को जंतर मंतर पर एक रोज़ा भूक हड़ताल के ख़िलाफ़ बाअज़ एम पीज ने पार्टी वफ़ादारी से क़ता नज़र होकर अन्ना हज़ारे और उनकी टीम पर सियासतदानों के ख़िलाफ़ नाशाइस्ता ज़बान का इस्तेमाल करने का इल्ज़ाम आइद किया था ।