सहाबी हज़रत जुबैर ओ बिन मुताम को क़बूल इस्लाम से क़ब्ल और बाद रसूल अल्लाह की ख़िदमात का ख़ुसूसी शरफ़

हैदराबाद।२८मई(प्रैस नोट)सहाबा किराम ओके लिए ज़ात अतहर से मुहब्बत ही असलसरमाया हयात था इस दौलत से मालामाल अज़ीम एल्मर तिब्बत हस्तीयों में हर एक अपनी जगह इशक़ रसोलऐ में कामिल वाकमल था और उन्हें में एक अहम नाम हज़रत जुबैर बिन मतामओ का भी है जिन्हें क़बूल इस्लाम से पहले भी हुज़ूर अनोरऐ की ख़िदमत का मौक़ा मयस्सर आया था और मुशर्रफ़ बह इस्लाम होने के बाद तो उन की फ़दाईत-ओ-जांनिसारी ने उन्हें तक़र्रुब ख़ास से सरफ़राज़ कर दिया।

डाक्टर सय्यद मुहम्मद हमीद उद्दीन शरफ़ी डायरेक्टर आई हरक ने आज सुबह 9 बजे ऐवान ताज उलार फा-ए-हमीदा बाद वाक़्य शरफ़ी चमन ,सब्ज़ी मंडी और ग्यारह बजे दिन जामि मस्जिद महबूब शाही , माला कुन्टा रोड,रूबरू मुअज़्ज़म जाहि मार्किट में इस्लामिक हिस्ट्री रिसर्च कौंसल इंडिया ( आई हरक) के ज़ेर-ए-एहतिमाम मुनाक़िदा 92वीं तारीख़ इस्लाम इजलास के अली उल-तरतीब पहले सैशन में अहवाल अनबया-ए-अलैहिम अस्सलाम के तहत हज़रत मूसा अलैहि अस्सलाम के मुक़द्दस हालात और दूसरे सैशन में एक मुहाजिर एक अंसारी सिलसिला के ज़िमन में सहाबी रसूल मक़बोलऐ हज़रत जबीरओ बिन मुताम की हयात मुबारका पर तो सेवी लकचर दिये।

करा-ए-त कलाम पाक, हमद बारी ताला,नाअत शहनशाह कौनैन ऐसे कार्रवाई काआग़ाज़ हुआ।मौलाना सय्यद मुहम्मद सैफ उद्दीन हाकिम हमीदी कामिल निज़ामीया ने एक आयत जलीला का तफ़सीरी, एक हदीस शरीफ़ का तशरीही और एक फ़िक़ही मसला का तोज़ीही मुतालआती मवाद पेश किया बादा प्रोफ़ैसर सय्यद मुहम्मद हसीब उद्दीन हमीदी ज्वाईंट डायरेक्टर आई हरक ने इंग्लिश लकचर सीरीज़ के ज़िमन में हयात तीबहऐ के मुक़द्दस मौज़ू पर अपना 42 वां सिलसिला वार लेक्चर दिया।

अह्ले इल्म हज़रात औरबाज़ौक़ सामईन की कसीर तादाद मौजूद थी। डाक्टर हमीद उद्दीन शरफ़ी ने सिलसिला कलाम को जारी रखते होई कहा कि हज़रत जबीरओ के वालिद मुताम बिन अदी कुफ़्फ़ारक़ुरैश और आदा-ए-दीन के दरमयान रहने के बावस्फ़ रसूल अललहऐ के ज़बरदस्त हामी और मुख़लिस-ओ-ख़ैर ख़ाह थे इसी वजह से क़ुरैश की निगाहों में खटकते थे लेकिन उन्हों ने किसी की परवाह नहीं की और जब भी मुम्किन हुआ रसूल अललहऐ की ख़िदमत का शरफ़ पाया।

मुक़ातआ के ज़माने में शाब अबी तालिब में क़ुरैश की नज़रों से बचा कर अशीया ख़ोरो नोश पहुंचाना उन का नुमायां काम रहा।ताइफ से वापसी के बाद जब रसूल अललहऐ ने अपनी आमद की इत्तिला भेजी तो मुताम ने हज़ोरऐआनोर की हिमायत का ऐलान किया और अपने बेटों को हुज़ूर अक़दसऐ की ख़िदमत में भेजा ताकि इमकानी मोह नाअत की सूरत में हुज़ूर अक़दसऐ की क़ुरैश से हिफ़ाज़त का फ़रीज़ा अदा कर सकें फ़र्र ज़िंदाँ मुताम में जो ख़िदमत तहफ़्फ़ुज़ पर मामूर हुए इन में हज़रत जबीरओ भी शामिल थी।

डाक्टर हमीदउद्दीन शरफ़ी ने कहा कि हिज्रत के बाद मदीना मुनव्वरा में असीरान बदर की रिहाई केज़िमन में हज़रत जबीरओ का आना हुआ था। इस वक़्त कलाम रब्बानी की समाअत काशरफ़ भी पाया था लेकिन महिज़ इस वजह से क़बूल इस्लाम से रुके रहे कि कहीं क़ुरैश का ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब और जबर-ओ-इस्तिबदाद ना बढ़ जाए वो दीन हक़ इस्लाम और मुस्लमानों के मुताल्लिक़ अपनी क़ौम के शदीद रवैय्ये से वाक़िफ़ थे लेकिन उन की सलीम तबईत और हक़ क़बूल करने के कलबी जज़बा ने उन्हें दुबारा बारगाह रसालतऐ में पहुंचा दिया औरसुलह हुदैबिया के बाद और फ़तह अज़ीम मक्का मुकर्रमा से पहले दौलत इस्लाम से सरफ़राज़ हो गई।

हज़रत जबीरओ की कुनिय्यत अब्बू मुहम्मद थी उन के दादा अदी,नौफ़ल बिन अबद मुनाफ़ क़ुरशी के फ़र्ज़ंद थी। हज़रत जुबैर जहां रक़ीक़ अलक़लब, नरम मिज़ाज, सखी-ओ-फ़य्याज़ और इलमदोस्त थे वहीं बड़े ज़ोर आवर, बहादुर और माहिर हर्बथे ।क़बूल इस्लाम के बाद मार्का जनीन में उन के मुजाहिदाना कारनामों और हौसला मंदी के मुनाज़िर आम थी। हज़रत जबीरओ आबिद शब , ज़िंदादार, मुत्तक़ी-ओ-परहेज़गार थी।

अगरचे कि उन्हें बहुत ही थोड़ी मुद्दत के लिए दरबार रसालतऐ की हाज़िरी और फ़ैज़ानेसुहबत अक़्दस से बहरामंद होने का शरफ़ मिला लेकिन इकतिसाब फ़ैज़ ख़ास उन का मुक़द्दर बना और इर्शादात नबवी ऐ से बहरामंद होने के शरफ़ से मुमताज़ होई उन्हें बहुत सारी हदीसें हिफ़्ज़ हो गईं उन की मरवयात की तादाद साठ बहुत मशहूर ही। वो इशक़मौला ताला और मुहब्बत रसोलऐ के फ़ैज़ान-ओ-असर से ख़ूब नवाज़े गए थी।

इताअत हक़ तआला-ओ-इत्तिबा रिसालत से उन की किताब हयात मुज़य्यन थी। अरब के मुरव्वजाउलूम-ओ-फ़नून मैं दस्तरस रखते थे इलम अलानसाब के माहिरीन में इन का शुमार था। हुलुम-ओ-बुर्दबारी, मुरव्वत-ओ-रहमदिली, क़नाअत-ओ-सब्र-ओ-इस्तिक़लाल, इख़लास-ओ-मुदावमत अमल में आप अपनी नज़ीर थी।

हज़रत जबीर ओ बिन मातम ने तवील उम्र पाकर 57हमें इस दार फ़ानी से रहलत फ़रमाई। इजलास के इख़तताम से क़बल बारगाह रिसालत ई में सलाम ताज अलारफ़ाइऒ पेश किया गया ज़िक्र जुहरी और दाये सलामती पर आई हरक की92वीं तारीख़ इस्लाम के दोनों सैशन तकमील पज़ीर हुई।

अल्हाज मॊहम्मद यूसुफ़ हमीदी ने इबतदा-ए-में ख़ौरमक़दम किया और जनाब मुहम्मद मज़हर हमीदी ने आख़िर में शुक्रिया अदा किया।