सांस के टेस्ट के ज़रिया फेफड़ों के कैंसर का पता लगाया जा सकता है

हम अपने क़ारईन को सेहत से मुताल्लिक़ और इस पर होने वाली मुख़्तलिफ़ रिसर्च के बारे में वक्तन फौक़तन वाक़फ़ीयत देते रहते हैं। साइंसदानों ने अपने हालिया तजुर्बा की रोशनी में ये बात बताई है कि अगर हमें ये शुबा होजाए कि फ़लां फ़लां शख़्स फेफड़ों के कैंसर में मुबतला है तो उसकी तौसीक़ के लिए उसके फेफड़ों से निकली हुई हुआ (कार्बन डाई ऑक्साईड) का तजज़िया किया जाये।

अमेरिका की क्लीवलैंड क्लीनिक के एक साइंसदाँ ने ये बात बताई। मुहक़्क़िक़ीन के मुताबिक़ इबतिदाई तजज़िया के ज़रिया सांस के ज़रिया छोड़ी गई सांस का एक क़तई बल्लू मारकर तैयार किया जा सकता है। क्लीवलैंड के लिंग कैंसर प्रोग्राम बरुए-ए-रेस्पिरेटरी इंस्टीटियूट के डायरेक्टर पीटर जय मीज़ोन ने बताया कि साइंसदानों का ये यक़ीन-ए-कामिल है कि कैंसर का फोड़ा जिस तरह नशव-ओ-नुमा पाता है इसके इस अमल से हमें कैंसर के खोलियों से ख़ारिज होने वाले एक माद्दे से पता चल सकता है।

उन्होंने कहा कि हम फ़िलहाल अपनी रिसर्च की बुनियाद पर सांस के ज़रिया टेस्ट पर ग़ौर कररहे हैं। मीज़ोन और उनके साथियों ने फेफड़ों के कैंसर में मुबतला 82 मरीज़ों का तजज़िया किया। ये वो मरीज़ हैं जिन्हें अब तक ईलाज से फाइदा का मौक़ा नहीं मिल सका। मरीज़ों को मामूल के मुताबिक़ सांस छोड़ने की हिदायत की गई थी और उनकी छोड़ी हुई सांस को एक आला सतही केमीकल सेंसर जिसे कलरव मैट्रिक सेंसर कहा जाता है, से जोड़ दिया गया। मीज़ोन ने कहा कि इस शोबा में मज़ीद रिसर्च जारी है।