शम्स तबरेज़, सियासत ब्यूरो।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबली मुख्तार अंसारी के व्यक्तित्व को कौन नहीं जानता। सरी खुदाई एक तरफ मुख्तार भाई एक तरफ की कहावत को सच साबित करने में मुख्तार अंसारी को एक बड़ा धुरंधर माना जाता है। अभी कुछ महीने पहले ही मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ था, जिसका अखिलेश ने एड़ी—चोटी लगाकर विरोध किया, यहां तक कि इस्तीफा देने की धमकी भी दे दी, लेकिन यादव परिवार में टीपू से टीपू सुल्तान बनने के बाद अखिलेश ने मुख्तार का टिकट काट दिया था, जिसके बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि मुख्तार निर्दल ही मऊ से चुनाव में खड़े होंगे। लेकिन मुख्तार ने सबको चौकाते हुए अचानक साईकिल को छोड़ हाथी पर सवार हो गए और मायावती ने उनका टिकट भी कन्फर्म कर दिया। उत्तर प्रदेश के चुनावी राजनीति में मुख्तार को गरीबों का मसीहा कहा जाता है तो वहीं मायावती को दलितो का। अब देखना होगा कि मुख्तार की माया का कितना रंग लाएगी।